अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 11
ऋषिः - बृहद्दिवोऽथर्वा
देवता - आदित्यगणः, रुद्रगणः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - विजयप्रार्थना सूक्त
86
अ॒र्वाञ्च॒मिन्द्र॑म॒मुतो॑ हवामहे॒ यो गो॒जिद्ध॑न॒जिद॑श्व॒जिद्यः। इ॒मं नो॑ य॒ज्ञं वि॑ह॒वे शृ॑णोत्व॒स्माक॑मभूर्हर्यश्व मे॒दी ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒र्वाञ्च॑म् । इन्द्र॑म् । अ॒मुत: । ह॒वा॒म॒हे॒ । य: । गो॒ऽजित् । ध॒न॒ऽजित् । अ॒श्व॒ऽजित् । य: । इ॒मम् । न॒: । य॒ज्ञम् । वि॒ऽह॒वे । शृ॒णो॒तु॒ । अ॒स्माक॑म् । अ॒भू॒: । ह॒रि॒ऽअ॒श्व॒ । मे॒दी ॥३.११॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्वाञ्चमिन्द्रममुतो हवामहे यो गोजिद्धनजिदश्वजिद्यः। इमं नो यज्ञं विहवे शृणोत्वस्माकमभूर्हर्यश्व मेदी ॥
स्वर रहित पद पाठअर्वाञ्चम् । इन्द्रम् । अमुत: । हवामहे । य: । गोऽजित् । धनऽजित् । अश्वऽजित् । य: । इमम् । न: । यज्ञम् । विऽहवे । शृणोतु । अस्माकम् । अभू: । हरिऽअश्व । मेदी ॥३.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रक्षा के उपाय का उपदेश।
पदार्थ
(अमुतः) वहाँ से (अर्वाञ्चम्) सन्मुख विराजमान (इन्द्रम्) इन्द्र परमेश्वर को (हवामहे) हम पुकारते हैं, (यः) जो (गोजित्) पृथिवी जीतनेवाला, (धनजित्) धन जीतनेवाला और (यः) जो (अश्वजित्) घोड़ों का जीतनेवाला है, वह (नः) हमारे (इमम्) इस (यज्ञम्) देवपूजन को (विहवे) संग्राम में (शृणोतु) सुने। (हर्यश्व) हे आकर्षण और विकर्षण शक्ति से व्यापक इन्द्र ! (अस्माकम्) हमारा (मेदी) स्नेही (अभूः) तू रहा है ॥११॥
भावार्थ
जो अन्तर्यामी परमात्मा संसार के सब पदार्थों में उत्कृष्ट है, उसका सदा स्मरण करके मनुष्य अपनी उन्नति करें ॥११॥
टिप्पणी
११−(अर्वाञ्चम्) अ० ३।२।३। अभिमुखम् (इन्द्रम्) परमेश्वरम् (अमुतः) तस्माद् देशात् (हवामहे) आह्वयामः (यः) इन्द्रः (गोजित्) गोः पृथिव्या जेता (धनजित्) धनानां जेता (अश्वजित्) अश्वानां जेता (यः) (इमम्) उपस्थितम् (नः) अस्माकम् (यज्ञम्) देवपूजनम् (विहवे) म० १। संग्रामे (शृणोतु) आकर्णयतु (अस्माकम्) (अभूः) भू−लुङ्। अभवः (हर्यश्व) म० ८। हे हरिभ्यामाकर्षणविकर्षणाभ्यां व्यापनशील (मेदी) अ० ३।६।२। स्नेही ॥
विषय
गोजित, धनजित, अश्वजित्
पदार्थ
१. सामान्यत: हम प्रभु से दूर और दूर ही रहते हैं। प्रभु से दूर रहना ही हमारी विषयासक्ति व विनाश का कारण हो जाता है, अत: (अमुत:) = दूर प्रदेश से (इन्द्रम्) = उस शत्रु-संहारक प्रभु को (अर्वाञ्चम्) = अपने अन्दर (हवामहे) = पुकारते हैं (यः) = जो प्रभु (गोवित्) = हमारे लिए ज्ञानेन्द्रियों का विजय करनेवाले हैं। इनके विजय के द्वारा वे प्रभु हमारे लिए (धनजित्) = आवश्यक सब धनों तथा ज्ञान का विजय करते हैं, (य:) = जो प्रभु (अश्वजित्) = हमारे लिए कर्मों में व्यास होनेवाली निरन्तर यज्ञों में व्याप्त रहनेवाली कर्मेन्द्रियों का विजय करते हैं। २. वे प्रभु (विहवे) = संग्रामों में (न:) = हमारे (इमं यज्ञम्) = इस पूजन को (शृणोतु) = सुनें। प्रभु को ही तो इन संग्रामों में हमें विजयी बनाना है। हे (हर्यश्व) = दु:खों का हरण करनेवाले, इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करानेवाले प्रभो! आप (अस्माकम्) = हमारे (मेदी अभूः) = स्नेह करनेवाले है। आप ही वस्तुतः हमारा हित करनेवाले हैं।
भावार्थ
हम प्रभु को पुकारते हैं। प्रभु हमें उत्तम ज्ञानेन्द्रियों-ज्ञानधन व कर्मेन्द्रियाँ प्राप्त कराते हैं। ये प्रभु ही हमें संग्रामों में विजयी बनाते हैं। प्रभु ही हमारे स्नेही हैं।
विशेष
उत्तम ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान-परिपक्व होकर यह 'भृग बनता है। उत्तम कर्मेन्द्रियोंवाला बनकर यह अङ्गिरा' होता है। यह 'भृग्वङ्गिराः' ही अगले सूक्त का ऋषि है। यह कुष्ठ ओषधि के प्रयोग से ज्वर आदि रोगों को नष्ट कर डालता है।
भाषार्थ
(इन्द्रम्) सम्राट् को (अमुतः) उस दूर के स्थान से ( अर्वाञ्चम्) इधर अपनी ओर (हवामहे ) हम प्रजाजन बुलाते हैं, ( य : ) जिसने कि शत्रुओं की (गोजित्) गौओं को जीता है, ( धनजित् ) धनों को जीता है, (यः) जिसने (अश्वजित् ) अश्वों को जीता है । (विहवे) इस विविध आह्वान पर (न:) हमारे (इमम् यज्ञम् ) इस साम्राज्य-पज्ञ [के लिए आह्वान ] को (श्रृणोतु) वह सुने । (मेदी) स्नेही तू (हर्यश्व) हे शीघ्रगामी अश्वोंवाले इन्द्र ! (अस्माकम्) हमारा (अभूः) हो गया है, [तू हमारा सम्राट हो गया है।]
टिप्पणी
[विरक्त होकर, राजकार्य से पृथक् होकर, दूर चले गये सम्राट को प्रजाजन साम्राज्य-यज्ञ के लिए आहूत करते हैं, तो स्नेही सम्राट् वापस आ जाता है ।]
विषय
बल और विजय की प्रार्थना।
भावार्थ
(अमुतः) दूर से भी हम (अर्वाञ्चं) प्रत्यक्ष दीखने वाले इस लोक के (इन्द्रम्) राजा का (हवामहे) आराधन करते हैं (यः) जो कि (गो-जित्) गौ आदि पशुओं का विजेता, (धन-जित्) धनों का विजेता और (अश्व-जित्) अश्वों का विजय करने वाला है। वह (नः) हमारे (इमं यज्ञं) इस राष्ट्रयज्ञ का (वि-हवे) विशेष स्तुतिकाल और युद्धकाल में भी (शृणोतु) श्रवण करे। हे (हरि-अश्व) हरणशील अश्व = शक्तियों से सम्पन्न परमात्मन् ! और राजन् ! आप (अस्माकं) हमारे (मेदी) स्नेही (अभूः) हों। राजा और परमात्मा दोनों के पक्षों में समान है। अध्यात्म में—गौ = ज्ञानेन्द्रियां, अश्व = कर्मेन्द्रियां, धन = ज्ञान और कर्म फल।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बृहद्दिवो अथर्वा ऋषिः। अग्निर्देवता। १, ३-९ त्रिष्टुप्। १० विराड् जगती। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Strength and Victory
Meaning
We invoke Indra, lord omnipotent, from there on top of divine sovereignty and yet present here right in front at the universal human level, Indra who is the winner of lands, cows, culture and enlightenment, who is the winner of wealth, honour and excellence, and who is the winner of horses, advancement and attainment of the highest goal for us. May the lord hear our invocation and prayer in this yajnic battle of progress. May the lord be gracious, who commands all the contrary- complementarities of nature and humanity and raise us to the level of divine love and grace. (This hymn is the song of the ascent of life from human to the divine which is the highest possible attainment for humans on the personal as well as on the organisational level. Personal progress is the threefold growth of body, mind and spirit. Similarly socio- organisational progress too is threefold, individual, collective and global upto the cosmic. Joining both dimensions, we have the physical, mental and spiritual growth of the individual, social and cosmic personality of existence as it is.)
Subject
Indrah
Translation
We call the resplendent Lord from here to come hitherward, Him, who is conqueror of cows, conqueror of wealth and conqueror of horses. May he take note of our this sacrifice in the battle. O Lord of swift steeds, you have been our affectionate friend.
Translation
We-respectfully call hitherward the King who is the winner of Cows, wealth and the winner of horses. May hear of our excellent deed in the combat, O king of swift horse, Please be our friend.
Translation
We call from a distance towards us, the king, the winner of kine, wealth and horses. May he hear this prayer of ours in battle. May thou, O powerful king, be our friend and comrade.
Footnote
‘Indra’ may mean God as well. He bestows on us wealth, kine and horses, and is our Friend.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(अर्वाञ्चम्) अ० ३।२।३। अभिमुखम् (इन्द्रम्) परमेश्वरम् (अमुतः) तस्माद् देशात् (हवामहे) आह्वयामः (यः) इन्द्रः (गोजित्) गोः पृथिव्या जेता (धनजित्) धनानां जेता (अश्वजित्) अश्वानां जेता (यः) (इमम्) उपस्थितम् (नः) अस्माकम् (यज्ञम्) देवपूजनम् (विहवे) म० १। संग्रामे (शृणोतु) आकर्णयतु (अस्माकम्) (अभूः) भू−लुङ्। अभवः (हर्यश्व) म० ८। हे हरिभ्यामाकर्षणविकर्षणाभ्यां व्यापनशील (मेदी) अ० ३।६।२। स्नेही ॥
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