अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 9
ऋषिः - बृहद्दिवोऽथर्वा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - विजयप्रार्थना सूक्त
53
धा॒ता वि॑धा॒ता भुव॑नस्य॒ यस्पति॑र्दे॒वः स॑वि॒ताभि॑मातिषा॒हः। आ॑दि॒त्या रु॒द्रा अ॒श्विनो॒भा दे॒वाः पा॑न्तु॒ यज॑मानं निरृ॒थात् ॥
स्वर सहित पद पाठधा॒ता । वि॒ऽधा॒ता । भुव॑नस्य । य: । पति॑: । दे॒व: । स॒वि॒ता । अ॒भि॒मा॒ति॒ऽस॒ह:। आ॒दि॒त्या: । रु॒द्रा: । अ॒श्विना॑ । उ॒भा । दे॒वा: । पा॒न्तु॒ । यज॑मानम् । नि॒:ऽऋ॒थात् ॥३.९॥
स्वर रहित मन्त्र
धाता विधाता भुवनस्य यस्पतिर्देवः सविताभिमातिषाहः। आदित्या रुद्रा अश्विनोभा देवाः पान्तु यजमानं निरृथात् ॥
स्वर रहित पद पाठधाता । विऽधाता । भुवनस्य । य: । पति: । देव: । सविता । अभिमातिऽसह:। आदित्या: । रुद्रा: । अश्विना । उभा । देवा: । पान्तु । यजमानम् । नि:ऽऋथात् ॥३.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रक्षा के उपाय का उपदेश।
पदार्थ
(धाता) धारण करनेवाला, (विधाता) सृष्टि करनेवाला (देवः) प्रकाशमान, (सविता) सबका चलानेवाला, (अभिमातिषाहः) अभिमानियों का जीतनेवाला परमेश्वर, (यः) जो (भुवनस्य) संसार का (पतिः) पति है, और (आदित्याः) प्रकाशमान, (रुद्राः) दुःख नाश करनेवाले विद्वान् शूर पुरुष, (उभा) दोनों (अश्विना) सूर्य और पृथिवी लोक, और (देवाः) सब दिव्य पदार्थ (यजमानम्) यजमान को (निर्ऋथात्) विनाश से (पान्तु) बचावें ॥९॥
भावार्थ
मनुष्य परमेश्वर की महिमा जानकर विद्वानों के सत्सङ्ग और सब पदार्थों से उपकार लेकर आनन्द भोगें ॥९॥
टिप्पणी
९−(धाता) धर्ता (विधाता) स्रष्टा (भुवनस्य) संसारस्य (यः) (पतिः) पालयिता (देवः) प्रकाशमानः (सविता) प्रेरयिता (अभिमातिसहः) अ० ४।३२।४। अभिमातीनां अभिमानिनां पराजेता (आदित्याः) अ० १।९।१। आङ्+दीपी दीप्तौ−यक्। प्रकाशमानाः। (रुद्राः) अ० २।२७।६। दुःखनाशकाः पुरुषाः (अश्विना) अ० २।२९।६। अश्विनौ। द्यावापृथिव्यौ (उभा) उभौ (देवाः) दिव्यपदार्थाः (पान्तु) रक्षन्तु (यजमानम्) यज्ञकर्तारम् (निर्ऋथात्) अर्तेर्निरि। उ० २।८। इति निर्+ऋ हिंसायाम्−थक्। परिहिंसनात्। विनाशात् ॥
विषय
यजमान का रक्षण धाता
पदार्थ
१. (धाता) = वह धारण करनेवाला (विधाता) = सृष्टि का रचयिता (सविता देव:) = सबका प्रेरक प्रकाशमय प्रभु (अभिमातिषाहः) = हमारे सब अभिमानी शत्रुओं का पराभव करनेवाले हैं। प्रभु वे हैं, (यः) = जो (भुवनस्य पतिः) = सारे ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं। सारे ब्रह्माण्ड का धारण व रक्षण करनेवाले वे प्रभु हमारे शत्रुओं का विनाश करके हमारा भी धारण करते हैं । २. (आदित्या:) = आयुष्य का आदान करनेवाले ये बारह मास (रुद्रा:) = शरीरस्थ प्राण [रोगों को दूर भगानेवाले ये प्राण] (उभा अश्विना) = दोनों धुलोक व पृथिवीलोक [इमे ह वै द्यावापृथिवी प्रत्यक्षमश्विनौ-शत० ४.२.५.१६] तथा (देवा:) = अन्य सब प्राकृतिक शक्तियों (यजमानम्) = इस यज्ञशील पुरुष को (निर्ऋथात्) = दुर्गति व विनाश से पान्तु-बचाएँ।
भावार्थ
उत्तम प्रेरणा प्राप्त करते हुए प्रभु हम यज्ञशील पुरुषों को यज्ञों के कर्तृत्व के अहंकार से ऊपर उठाएं। प्रभु का बनाया हुआ यह सारा संसार हमें विनाश से बचाए।
भाषार्थ
(धाता) धारण-पोषण करनेवाले अन्न का अधिष्ठाता, (विधाता) विधिविधान का अधिष्ठाता, (यः) और जो ( भुवनस्य) समग्र पृथिवी का (पतिः) स्वामी है, भूपति है वह, (सविता) प्रसूतियों का, या धन सम्पत् का (देवः) दिव्यगुणी अधिष्ठाता (अभिमातिषाहः ), अभिमानी राजाओं का पराभव करनेवाला या उनके अभिमानों का दलन करनेवाला , (आदित्याः रुद्राः) आदित्य कोटि के तथा रुद्रकोटि के विद्वान्, (उभौ अश्विनी) अश्वों के दो अधिष्ठाता, (देवाः) ये सब देव (यजमानम्) साम्राज्य-यज्ञ के कर्ता सम्राट की (पान्तु) रक्षा करें, (निर्ऋथात्) कष्ट आपत्तियों से ।
टिप्पणी
[धाता=अन्नाधिष्ठाता, यथा "धाता ददातु दाशुषे प्राची जीवातु मक्षिताम्" (शां० श्रौ० ९I२८।३), अर्थात् धाता "कर" देनेवाले भूमिपति के लिए, प्राचीन अर्थात् प्रगति करानेवाली तथा मात्रा में न क्षीण होने वाली "जीवातुम्" अर्थात् जीवन- निर्वाहक अन्न-सम्पत्ति प्रदान करे । सविता=षु प्रसवैश्वर्ययोः (भ्वादिः), प्रसूतियों या साम्राज्य की धनसम्पत् का अधिष्ठाता, सम्भवतः द्वितीय अर्थ अभिप्रेत है, तभी उसे देव कहा है , अर्थात् दिव्यगुणी, जोकि साम्राज्य की धनसम्पत् को चुराता न रहे । अभिमातिषाहः= साम्राज्य का प्रधान सेनापति, बृहती सेना का अधिपति (यजु:० १७।४०) । अश्विना, उभा= अश्वों के दो अधिष्ठाता, एक रथ-सम्बन्धी अश्वों का अधिष्ठाता दूसरा अश्वारोही सैनिकों के अश्वों का अधिष्ठाता। निर्ऋथात् = निर्ऋतिः कृच्छ्रापत्तिः (निरुक्त २।२।८)।]
विषय
बल और विजय की प्रार्थना।
भावार्थ
(धाता) वह परमेश्वर सबका धारण पोषण करने वाला, (वि-धाता) सब का उत्पादक (देवः) तथा सब का प्रकाशक है। (यः) जो (भुवनस्य पतिः) समस्त उत्पन्न हुए विश्व का पालक है वही (सविता) सब का प्रेरक और (अभिमाति-सहः) अभिमान करने वाले अन्तः-शत्रु काम क्रोध आदि का विनाशक है। (यजमानं) इस देवार्चा करने हारे यजमान = आत्मा को उस देव की दिव्य शक्तियां (निः-ऋथात्) असत्यमय पाप मार्ग से (पान्तु) बचावें। वे दिव्यं शक्तियां ये हैं (आदित्याः) १२ मास, (रुद्राः) रुद्र, वायुएं और (उभा अश्विना) दोनों अश्वी, सूर्य और पृथिवी।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बृहद्दिवो अथर्वा ऋषिः। अग्निर्देवता। १, ३-९ त्रिष्टुप्। १० विराड् जगती। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Strength and Victory
Meaning
May Dhata, lord sustainer of life and the universe, Vidhata, controller and director of the course of history and natural evolution, Savita, self-refulgent creator and inspirer who is the parental protector of the world and destroyer of adversity, negativity and enmity, Adityas, twelve phases of the sun over the year, Rudras, powers of love and graces, destroyers of suffering and injustice, and all the pranic energies of life, both the Ashvins, twin forces of nature’s complementarity operative in existence, and all the divine brilliancies of natural and human powers: may all these protect and promote the yajamana against adversity and fall from grace.
Translation
May the creator, the sustainer, and the inspirer Lord, who, the subduer of arrogant adversaries,is the Lord of all beings, old sages, adult sages, and both the divine healers protect (me) the sacrificer from perdition. (Also Rg. X.128.7)
Translation
He who is the supporter, creator, impellor, dispeller of evils and master of the world, twelve months of the year, eleven vital energies, twain of electricities and other wondrous powers guard the performer of yajna from calamity and wrongful action.
Translation
God, the sustainer; the Dissolver, the Lord and Creator of the universe, is the queller of turbulent internal foes like lust and anger. May His forces the Adityas, the Rudras, the twin Aswins, guard the soul from destruction.
Footnote
Adityas: The twelve months. Rudras: The breaths. Aswins: The Sun and Earth.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(धाता) धर्ता (विधाता) स्रष्टा (भुवनस्य) संसारस्य (यः) (पतिः) पालयिता (देवः) प्रकाशमानः (सविता) प्रेरयिता (अभिमातिसहः) अ० ४।३२।४। अभिमातीनां अभिमानिनां पराजेता (आदित्याः) अ० १।९।१। आङ्+दीपी दीप्तौ−यक्। प्रकाशमानाः। (रुद्राः) अ० २।२७।६। दुःखनाशकाः पुरुषाः (अश्विना) अ० २।२९।६। अश्विनौ। द्यावापृथिव्यौ (उभा) उभौ (देवाः) दिव्यपदार्थाः (पान्तु) रक्षन्तु (यजमानम्) यज्ञकर्तारम् (निर्ऋथात्) अर्तेर्निरि। उ० २।८। इति निर्+ऋ हिंसायाम्−थक्। परिहिंसनात्। विनाशात् ॥
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