अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 6
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - कुष्ठस्तक्मनाशनः
छन्दः - गायत्री
सूक्तम् - कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
59
इ॒मं मे॑ कुष्ठ॒ पूरु॑षं॒ तमा व॑ह॒ तं निष्कु॑रु। तमु॑ मे अग॒दं कृ॑धि ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । मे॒ । कु॒ष्ठ॒ । पुरु॑षम् । तम् । आ । व॒ह॒ । तम् । नि: । कु॒रु॒ । तम् । ऊं॒ इति॑ । मे॒ । अ॒ग॒दम् । कृ॒धि॒ ॥४.६॥
स्वर रहित मन्त्र
इमं मे कुष्ठ पूरुषं तमा वह तं निष्कुरु। तमु मे अगदं कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठइमम् । मे । कुष्ठ । पुरुषम् । तम् । आ । वह । तम् । नि: । कुरु । तम् । ऊं इति । मे । अगदम् । कृधि ॥४.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(कुष्ठ) हे गुणपरीक्षक पुरुष ! (मे) मेरे (इमम्) इस (तम्) पीड़ित (पुरुषम्) पुरुष को (आ वह) ले, और (तम्) उसको [दुःख से] (निष्कुरु) बाहिर कर। (तम् उ) उसको ही (मे) मेरे लिये (अगदम्) नीरोग (कृधि) कर ॥६॥
भावार्थ
राजा प्रयत्नपूर्वक प्रजा के मानसिक और शारीरिक रोगों को हटावे ॥६॥
टिप्पणी
६−(इमम्) दृश्यमानम् (मे) मम (कुष्ठ) म० १। हे गुणपरीक्षक पुरुष (पुरुषम्) अ० १।१६।४। पुरुषम्। जनम् (तम्) तर्द। हिंसायाम्−ड हिंसितम् (आ वह) आनय (तम्) पूर्वोक्तम् (निष्कुरु) बहिष्कुरु। उद्धर (तम्) (उ) एव (अगदम्) गद कथने रोगे च−अच्। अरोगम् (कृधि) कुरु ॥
विषय
अगदता
पदार्थ
१. हे (कुष्ठ) = कुष्ठ नामक ओषधे! (इमं तं मे पूरुषम् आवह) = इस मेरे रोगी पुरुष को मेरे लिए फिर से प्राप्त करा। (तं निष्कुरु) = उसे रोग से बाहर कर दे-उसके रोग को दूर कर दे। २. (मे तम्) = मेरे उस पुरुष को (उ) = निश्चय से (अगदं कृधि) = नीरोग कर दे।
भावार्थ
कुष्ठ ओषधि हमारे रुग्ण बन्धु को रोग से बाहर निकालकर-नीरोग बनाकर फिर से हमें प्राप्त कराए।
भाषार्थ
(कुष्ठ) हे कूठ-औषध ! (मे) मेरे (इमम्, पूरुषम्) इस पुरुष को, अर्थात् (तम्) उस रोगी को (आवह) तू अपने पास ला, ( तम् ) उसे (निष्कुरु) रोगरहित कर (तम्) उस ( में ) मेरे [ पुरुष ] को (उ) निश्चय से ( अगदम् कृधि) रोगरहित कर ।
टिप्पणी
[आवह=अर्थात् रोगी को तू शक्ति प्रदान कर, ताकि वह रोगशय्या का परित्याग कर, पूर्ण आरोग्य के लिए स्वयं तेरे समीप आ सके। वर्णन कविता में हुआ है।]
विषय
कुष्ठ नामक परमात्मा वा ओषधि का वर्णन करते हैं।
भावार्थ
हे पार्थिव देह में स्थित परमात्मन् ! (मे) मेरे (इमं) इस (पुरुषं) पुरुष को अर्थात् शरीर-पुरी में बसने वाले आत्मा को (आ वह) सात्विक भाव रूपी आरोग्यता प्राप्त करा, (तं निष्कुरु) उसको राग-द्वेषादि के रोग से मुक्त कर और (तम् उ मे अगदं कृधि) मेरे इस आत्मा को राग द्वेष आदि के रोग से मुक्त बनाये रख। (२) वह कूठ ही देह को नीरोग करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वंगिरा ऋषिः। यक्ष्मनाशनः कुष्ठो देवताः। १-४, ७, ९ अनुष्टुभः। ५ भुरिक्, ६ गायत्री। १० उष्णिग्गर्भा निचृत्। दशर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Kushtha Oshadhi
Meaning
O kushtha herb, raise this patient for me, raise him to freedom from takman, restore him to good health and freedom from suffering.
Translation
O kustha, may you bring off this man of mine; may you relieve him; may you make this man of mine fally free from disease.
Translation
Let this Kustha be applied to this man of mine and let it restore his health. Let it free my man from disease.
Translation
O God, grant spiritual health to my soul that resides in the body Free it from the ailment of anger and hatred. Release my soul from moral ill-health.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(इमम्) दृश्यमानम् (मे) मम (कुष्ठ) म० १। हे गुणपरीक्षक पुरुष (पुरुषम्) अ० १।१६।४। पुरुषम्। जनम् (तम्) तर्द। हिंसायाम्−ड हिंसितम् (आ वह) आनय (तम्) पूर्वोक्तम् (निष्कुरु) बहिष्कुरु। उद्धर (तम्) (उ) एव (अगदम्) गद कथने रोगे च−अच्। अरोगम् (कृधि) कुरु ॥
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