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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 10
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - कुष्ठस्तक्मनाशनः छन्दः - उष्णिग्गर्भा निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
    69

    शी॑र्षाम॒यमु॑पह॒त्याम॒क्ष्योस्त॒न्वो॒रपः॑। कुष्ठ॒स्तत्सर्वं॒ निष्क॑र॒द्दैवं॑ समह॒ वृष्ण्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शी॒र्ष॒ऽआ॒म॒यम् । उ॒प॒ऽह॒त्याम् । अ॒क्ष्यो: । त॒न्व᳡: । रप॑: । कुष्ठ॑: । तत् । सर्व॑म् । नि: । क॒र॒त् । दैव॑म् । स॒म॒ह॒ । वृष्ण्य॑म् ॥४.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शीर्षामयमुपहत्यामक्ष्योस्तन्वोरपः। कुष्ठस्तत्सर्वं निष्करद्दैवं समह वृष्ण्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शीर्षऽआमयम् । उपऽहत्याम् । अक्ष्यो: । तन्व: । रप: । कुष्ठ: । तत् । सर्वम् । नि: । करत् । दैवम् । समह । वृष्ण्यम् ॥४.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 4; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (शीर्षामयम्) शिर के रोग, (अक्ष्योः) दोनों नेत्र के (उपहत्याम्) उपद्रव और (तन्वः) शरीर के (रपः) दोष, (तत् सर्वम्) इस सबको (कुष्ठः) गुणपरीक्षक पुरुष (निष्करत्) बाहिर करे। (समह) हे सत्कार के साथ वर्तमान राजन् ! तेरा (वृष्ण्यम्) जीव का हितकारक बल (दैवम्) दिव्यगुणवाला है ॥१०॥

    भावार्थ

    राजा प्रजा के स्वास्थ्यरक्षा का सदा उपाय करता रहे ॥१०॥

    टिप्पणी

    १–०−(शीर्षामयम्) बलिमलितनिभ्यः कयन्। उ० ४।९९। इति आङ्+अम रोगे−कयन्, यद्वा मीञ् हिंसायाम्−पचाद्यच्। शिरोरोगम् (उपहत्याम्) हनस्त च। पा० ३।१।१०८। इति उप+हन−क्यप्, नस्य तः। उपहानिमुपद्रवम् (अक्ष्योः) अक्ष्णोः। नेत्रयोः (तन्वः) तन्वाः। शरीरस्य (रपः) दोषम् (कुष्ठः) गुणपरीक्षकः पुरुषः (तत्) (सर्वम्) (निष्करत्) बहिष्कुर्यात् (दैवम्) दिव्यगुणविशिष्टम् (समह) मह पूजायाम्−पचाद्यच्। हे महेन सत्कारेण सह वर्तमान ! (वृष्ण्यम्) अ० ४।४।४। वृष्णे इन्द्राय जीवाय हितम्। बलम्। तव सामर्थ्यमस्ति ॥

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    विषय

    सिर, आँखों व शरीर को नीरोग करनेवाला 'कुष्ठ'

    पदार्थ

    १. (शीर्षामयम्) = शिर-सम्बन्धि रोग को, (अक्ष्योः उपहत्याम्) = दृष्टिशक्ति की क्षीणता को, (तन्व: रप:) = शरीर के दोषों को (तत् सर्वम्) = उस सबको (कुष्ठः) = यह कुष्ठ औषध (निष्करत्) = बाहर कर देता है। २. हे (समह) = तेज:सम्पन्न कुष्ठ! तेरा (वृष्णयम्) = बल (दैवम्) = दिव्य है, अलौकिक है, असाधरण है।

    भावार्थ

    कुष्ठ औषध में असाधरण शक्ति है। यह सिर, आँखों और अन्य अङ्गों को निर्दोष बनाता है। अगले सूक्त का ऋषि 'अथर्वा' है और 'लाक्षा' देवता है|

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    भाषार्थ

    (शीर्षामयम् ) सिर के रोग को, (अक्ष्योः) आँखों के ( उप हत्याम् ) हनन को, अर्थात् चक्षुः के रोग [अन्धापन] को, (तन्वः) शरीर के अन्य (रपः) पापजन्य रोगों को, (तत् सर्वम् ) उस सबको (कुष्ठ: ) कूठ-ओषध (निष्करत्) शरीर से निकाल देता है, तथा (वृष्ण्यम्) वर्षाजन्य (देवम् ) द्युति अर्थात् ज्वलनोत्पादक रोगसमूह को (समह = सम् , अह करत्) पृथक् करके सम्यक् कर देता है ।

    टिप्पणी

    [अह= अह, ह इति च विनिग्रहार्थीयौ (निरुक्त १२ ५ ) । विनिग्रहः पृथक्करण । "अह" अ पृथक् करके, "सम् करत्" सम्यक् कर देता है । ]

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    विषय

    कुष्ठ नामक परमात्मा वा ओषधि का वर्णन करते हैं।

    भावार्थ

    (शीर्ष-आमयम्) सिर के रोग अर्थात् कुविचार का और (अक्ष्योः तन्वः रपः) आंखों और शरीर के दोष अर्थात् कुदृष्टि और व्यभिचार आदि का (उप-हत्याम्) तथा हत्या और हिंसाभाव का (कुष्ठः) पार्थिव देह में स्थित परमात्मा (निष्करत्) प्रतिकार कर देता है, (सम् अह) निश्चय से (दैव्यं वृष्ण्यम्) वह परमात्मा दिव्य औषध के सदृश है। (२) सिर के रोग, चक्षु और शरीर के सब भीतरी मलों (गदूदों) को निकाल कर शरीर को हृष्ट पृष्ट स्वच्छ नीरोग करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वंगिरा ऋषिः। यक्ष्मनाशनः कुष्ठो देवताः। १-४, ७, ९ अनुष्टुभः। ५ भुरिक्, ६ गायत्री। १० उष्णिग्गर्भा निचृत्। दशर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kushtha Oshadhi

    Meaning

    Ailments of the head and brain, weaknesses of the eye, infirmities of the body, kushtha cures all. Truly it is vigour and power of divinity in herbal form for man.

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    Translation

    Diseases of head, defects of eyes, and maladies of the body, all that the kustha relieves, as well as it is a divine tonic. (for virility i.e.,vrsnyam.)

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    Translation

    This Kustha removes all the diseases comprising malady effecting head, troubles of eyes and defect of body and is Possesses wondrously vigorous powers.

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    Translation

    Malady that affects the head, eye-weakness, physical frailty, violentce-all this let God heal and cure: aye, God is like an efficacious medicine.

    Footnote

    Malady of the head: Evil thought. Eye-weakness: Hatred. Physical frailty: Adultery, fornication.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १–०−(शीर्षामयम्) बलिमलितनिभ्यः कयन्। उ० ४।९९। इति आङ्+अम रोगे−कयन्, यद्वा मीञ् हिंसायाम्−पचाद्यच्। शिरोरोगम् (उपहत्याम्) हनस्त च। पा० ३।१।१०८। इति उप+हन−क्यप्, नस्य तः। उपहानिमुपद्रवम् (अक्ष्योः) अक्ष्णोः। नेत्रयोः (तन्वः) तन्वाः। शरीरस्य (रपः) दोषम् (कुष्ठः) गुणपरीक्षकः पुरुषः (तत्) (सर्वम्) (निष्करत्) बहिष्कुर्यात् (दैवम्) दिव्यगुणविशिष्टम् (समह) मह पूजायाम्−पचाद्यच्। हे महेन सत्कारेण सह वर्तमान ! (वृष्ण्यम्) अ० ४।४।४। वृष्णे इन्द्राय जीवाय हितम्। बलम्। तव सामर्थ्यमस्ति ॥

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