अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 4
ऋषिः - अथर्वा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - भुरिक्पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
43
अति॑ धावतातिसरा॒ इन्द्र॑स्य॒ वच॑सा हत। अविं॒ वृक॑ इव मथ्नीत॒ स वो॒ जीव॒न्मा मो॑चि प्रा॒णम॒स्यापि॑ नह्यत ॥
स्वर सहित पद पाठअति॑ । धा॒व॒त॒ । अ॒ति॒ऽस॒रा॒: । इन्द्र॑स्य । वच॑सा । ह॒त॒ । अवि॑म् । वृक॑:ऽइव । म॒थ्नी॒त॒ । स: । व॒: । जीव॑न् । मा । मो॒चि॒। प्रा॒णम् । अ॒स्य । अपि॑ । न॒ह्य॒त॒ ॥८.४॥
स्वर रहित मन्त्र
अति धावतातिसरा इन्द्रस्य वचसा हत। अविं वृक इव मथ्नीत स वो जीवन्मा मोचि प्राणमस्यापि नह्यत ॥
स्वर रहित पद पाठअति । धावत । अतिऽसरा: । इन्द्रस्य । वचसा । हत । अविम् । वृक:ऽइव । मथ्नीत । स: । व: । जीवन् । मा । मोचि। प्राणम् । अस्य । अपि । नह्यत ॥८.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(अतिसराः) हे उद्योगी शूरो ! (अति धावत) अत्यन्त करके धावा करो। (इन्द्रस्य) परम ऐश्वर्यवाले राजा के (वचसा) वचन से (हत) मारो। [उसे] (मथ्नीत) मथ डालो, (वृक इव) जैसे भेड़िया (अविम्) भेड़ को। (सः) वो (जीवन्) जीता हुआ (वः) तुम्हारी (मा मोचि) मुक्ति न पावे। (अस्य) इसके (प्राणम्) प्राण को (अपि) भी (नह्यत) बाँध लो ॥४॥
भावार्थ
शूरवीर पुरुष राजा की आज्ञा से चढ़ाई करके शत्रुओं का सर्वथा नाश करें ॥४॥
टिप्पणी
४−(अति) अत्यन्त (धावत) धावु गतिशुद्ध्योः। शीघ्रं गच्छत (अतिसराः) म० २। अर्शआद्यच्। हे अतिसरोपेताः। हे उद्योगिनः पुरुषाः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (वचसा) वचनेन (हत) नाशयत (अविम्) रक्षणीयं मेषम् (वृकः) आदाने−क। आदानशीलो घातकजन्तुविशेषः (इव) यथा (मथ्नीत) विलोडयत। (सः) शत्रुः (वः) युष्माकम् (जीवन्) प्राणान् धारयन् (मा मोचि) मुक्तिं न प्राप्नुयात् (प्राणम्) जीवनम् (अस्य) शत्रोः (अपि) (नह्यत) बध्नीत ॥
विषय
इन्द्रस्य वचसा हत
पदार्थ
१. हे (अतिसरा:) = अतिशयेन गतिशील पुरुषो! (अतिधावत) = तुम गति द्वारा अपने जीवन को अति शुद्ध बनाओ। (इन्द्रस्य वचसा हत) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु के वचन से-उसके आदेश के अनुसार सम्पूर्ण समाज के शत्रु को मार डालो। यदि उसके सुधरने की आशा नहीं है तो उसे प्राणों से वञ्चित करना ठीक ही है। २. (इव) = जैसे (वृक: अविम्) = एक भेड़िया भेड़ का मथन कर डालता है, इसप्रकार तुम इस समाज-शत्रु को मनीत कुचल डालो। (सः) = वह (वः) = तुमसे (जीवन् मा मोचि) = जीता हुआ न छुट जाए। (अस्य) = इसके (प्राणम्) = प्राण को (अपिनहात) = बाधैं डालो। इसकी प्राणशक्ति इसप्रकार नियन्त्रित कर दी जाए कि यह समाज की कुछ भी हानि न कर सके।
भावार्थ
हम गति द्वारा अपने जीवन को शुद्ध बनाएँ। प्रभु के आदेश के अनुसार समाज शत्रु को उचित दण्ड देना आवश्यक हो तो वह दिया जाए अथवा उसकी गतिविधियों को पूर्णरूप से नियन्त्रित कर दिया जाए।
भाषार्थ
(अतिसराः) हे शीघ्रगामी सैनिकों ! (अति धावत) खूब दौड़ो, (इन्द्रस्य) सम्राट् के (वचसा) कथन या आदेश के अनुसार (हत) अदेवाधिकारी [३] को मार डालो। (वृक:) भेड़िया (इव ) जैसे ( अविम् ) भेड़ को, वैसे गुम (मथ्नीत) अदेवाधिकारी को मथ डालो, (मा मोचि) उसे न छोड़ो, (अस्य) इसके (प्राणम्) श्वास-प्रश्वास को (अपि) भी (नह्यात) वाँध दो [नासिका तथा मुख पर पट्टी बाँध दो, ताकि (स:) वह (व:) तुम्हारा अदेवाधिकारी (मा जीवन् ) न जीवित रहे ।
टिप्पणी
[वचसा =सम्राट का बचन आदेशरूप हो होता है । (नह्यत= णह बन्धने (दिवादिः)।]
विषय
सैनिकों और सेनापतियों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
युद्ध की रीति का उपदेश करते हैं—हे (अतिसराः) सुभटो ! तेज़ सवारो ! (अति धावत) खूब वेग से दौड़ो। (इन्द्रस्य वचसा हत) अपने राजा की आज्ञा के अनुसार शत्रु पर मार करो (अविं वृक इव) जिस प्रकार भेड़िया भेड़ को झंझोट डालता है, उसी प्रकार (मथ्नीत) शत्रु की सेना को झंझोट डालो, मथ डालो, कुचल डालो, (वः) तुम लोगों के हाथों से (सः) वह (जीवन्) जीता जी (मा मोचि) न छूट पावे। (अस्य) इसके (प्राणम्) प्राण को, इसके प्राण धारण करने के सब उपायों को (अपि) भी (नह्यत) बन्द कर डालो। या (अपिनात) बांध दो, रोक दो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। १, २ अग्निर्देवता। ३ विश्वेदेवाः। ४-९ इन्द्रः। २ त्र्यवसाना षट्-पदा जगती। ३, ४ भुरिक् पथ्यापंक्तिः। ६ प्रस्तार पंक्तिः। द्वयुष्णिक् गर्भा पथ्यापंक्तिः। ९ त्र्यवसाना षट्पदा द्व्युष्णिग्गर्भा जगती। नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Elimination of Enemies
Meaning
Come fast, tempestuous forces, rush on forward by the command of Indra, pounce upon the enemy and crush him as a wolf crushes the prey. Let him not get away alive. Take on all his forces too, break down their morale and bind them as prisoners.
Subject
Indrah
Translation
Run forward, O vanguard soldiers, slay at the command of the resplendent king (Indra); kill (the enemy) just as a wolf worries a sheep. Let him not escape alive from you. Shut even his breath fast.
Translation
O brave warriors! March on fast; attack the enemy according to King’s Command; agitate enemies as a wolf worries a Sheep; let him not-escape from you alive; Stop out his breath.
Translation
Ye enterprising warriors, run farther on, by king's order smite and slay the foe. As a wolf worrieth a sheep, so let not him escape from you while life remains. Stop fast his breath.
Footnote
‘Him, his’ refer to the foe.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(अति) अत्यन्त (धावत) धावु गतिशुद्ध्योः। शीघ्रं गच्छत (अतिसराः) म० २। अर्शआद्यच्। हे अतिसरोपेताः। हे उद्योगिनः पुरुषाः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (वचसा) वचनेन (हत) नाशयत (अविम्) रक्षणीयं मेषम् (वृकः) आदाने−क। आदानशीलो घातकजन्तुविशेषः (इव) यथा (मथ्नीत) विलोडयत। (सः) शत्रुः (वः) युष्माकम् (जीवन्) प्राणान् धारयन् (मा मोचि) मुक्तिं न प्राप्नुयात् (प्राणम्) जीवनम् (अस्य) शत्रोः (अपि) (नह्यत) बध्नीत ॥
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