अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वास्तोष्पतिः
छन्दः - दैवी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
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पृ॒थि॒व्यै स्वाहा॑ ॥२॥
स्वर सहित पद पाठपृ॒थि॒व्यै । स्वाहा॑ ॥९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
पृथिव्यै स्वाहा ॥२॥
स्वर रहित पद पाठपृथिव्यै । स्वाहा ॥९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
पदार्थ
(पृथिव्यै) विस्तृत नीति के लिये (स्वाहा) सुन्दर वाणी है ॥२॥
टिप्पणी
२−(पृथिव्यै) विस्तृतायै नीतये (स्वाहा) ॥
विषय
त्रिलोकी का विजेता 'ब्रह्मा'
पदार्थ
पृथिव्यै-इस पृथिवीरूप शरीर के लिए स्वाहा-आपके प्रति अपना अर्पण करता हूँ।
भावार्थ
ब्रह्मा वही है जिसने त्रिलोकी का विजय करके अपने को ब्रह्मलोक की प्राप्ति के योग्य बनाया है। तीनों लोकों की उन्नति समानरूप से अपेक्षित है। यही भाव क्रम-विपर्यय से सूचित किया गया है।
भाषार्थ
(दिवे स्वाहा) द्युलोक के लिए आहुति हो । (पृथिव्यै स्वाहा) पृथिवी के लिए आहुति हो । (अन्तरिक्षाय स्वाहा) अन्तरिक्ष के लिए आहुति हो।
टिप्पणी
[आरोह-कम से मन्त्र-क्रम चाहिए, यथा पृथिव्यै स्वाहा, अन्तरिक्षाय स्वाहा, दिवे स्वाहा, यह लोकक्रम१ है। व्यक्ति निज "अल्पकायिक" स्वरूप को "विश्वकायिक" स्वरूप में लीन करना चाहता है [मन्त्र ७] । वह पहले पृथिवी में निज पार्थिव स्वरूप को लीन करता है, वह पृथिवी को निज पार्थिव-काय समझता है। तदनन्तर अन्तरिक्ष में निज सूक्ष्म-देह को लीन करता है, अन्तरिक्ष को निज सुक्ष्म-देह वह समझता है। तदनन्तर दिव् में निज कारण-देह को लीन करता है, दिव को निज कारण-देह वह समझता है। यह है आरोह-क्रम, नीचे से ऊपर की ओर आरोहण करना। मन्त्रों में स्वाहा द्वारा अग्नि में आहुति देना अभिप्रेत नहीं, अपितु निज त्रिविध-देह को त्रिविध-लोकों में लीन करना अभिप्रेत है।] [१. आरोहक्रम से मन्त्रक्रम चाहिए "पुथिव्यै स्वाहा, अन्तरिक्षाय स्वाहा दिवे स्थाहा" तथा प्रत्यवरोहक्रम से मन्त्रक्रम चाहिए 'दिवे स्वाहा, अन्तरिक्षाय स्वाहा, पृथिव्यै स्वाहा', परन्तु दोनों क्रमों में मन्त्रक्रमों में विपर्यय हुआ है।]
विषय
स्वास्थ्य लाभ का उपाय।
भावार्थ
(पृथिव्यै स्वाहा) पृथिवी के लिये मैं उत्तम पदार्थों की आहुति देता हूं। वह भी मुझे स्वस्थता प्रदान करे॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पतिर्देवता। १, ५ देवी बृहत्यौ। २, ६ देवीत्रिष्टुभौ। ३, ४ देवीजगत्यौ। ७ विराडुष्णिक् बृहती पञ्चपदा जगती। ८ पुराकृतित्रिष्टुप् बृहतीगर्भाचतुष्पदा। त्र्यवसाना जगती। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Well Being of Body and Soul
Meaning
Homage to the earth for nourishment and stability, in truth of thought, word and deed in faith.
Translation
I dedicate it to earth.
Translation
We appreciate the Heavenly region. 2. We appreciate the earth.
Translation
I crave for wise statesmanship.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(पृथिव्यै) विस्तृतायै नीतये (स्वाहा) ॥
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