अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 138/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - नितत्नीवनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - क्लीबत्व सूक्त
121
क्ली॒बं कृ॑ध्योप॒शिन॒मथो॑ कुरी॒रिणं॑ कृधि। अथा॒स्येन्द्रो॒ ग्राव॑भ्यामु॒भे भि॑नत्त्वा॒ण्ड्यौ ॥
स्वर सहित पद पाठक्ली॒बम् । कृ॒धि॒ । ओ॒प॒शिन॑म् । अथो॒ इति॑ । कु॒री॒रिण॑म् । कृ॒धि॒ । अथ॑ । अ॒स्य॒ । इन्द्र॑: । ग्राव॑ऽभ्याम् । उ॒भे इति॑ । भि॒न॒त्तु॒ । आ॒ण्ड्यौ᳡ ॥१३८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
क्लीबं कृध्योपशिनमथो कुरीरिणं कृधि। अथास्येन्द्रो ग्रावभ्यामुभे भिनत्त्वाण्ड्यौ ॥
स्वर रहित पद पाठक्लीबम् । कृधि । ओपशिनम् । अथो इति । कुरीरिणम् । कृधि । अथ । अस्य । इन्द्र: । ग्रावऽभ्याम् । उभे इति । भिनत्तु । आण्ड्यौ ॥१३८.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
निर्बलता हटाने का उपदेश।
पदार्थ
(क्लीबम्) बलहीन पुरुष को (ओपशिनम्) उपयोगी (कृधि) बना, (अथो) और भी (कुरीरिणम्) कर्मकारी (कृधि) बना। (अथ) और (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाले वैद्य आप (ग्रावभ्याम्) पत्थर समान दो दृढ शस्त्रों से (अस्य) इस [रोगी] के (उभे) दोनों (आण्ड्यौ) आण्डी [वा अण्डिनी, दोनों अण्डकोश के रोग] को (भिनत्तु) छेदे ॥२॥
भावार्थ
वैद्य अण्डकोष के आण्डी, अण्डिनी, पथरी आदि रोगों को दृढ़ शस्त्रों से तोड़ कर ओषधि करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(क्लीबम्) म० १। निर्बलम् (कृधि) कुरु (ओपशिनम्) म० १। समन्तादुपयोगिनम् (अथो) अपि च (कुरीरिणम्) अ० ५।३१।२। कृञ उच्च। उ० ४।३३। डुकृञ् करणे−ईरन्, तत इनि। कर्मवन्तम् (अथ) पुनः (अस्य) रोगिणः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् वैद्यः (ग्रावभ्याम्) अ० ३।१०।५। पाषाणवद् दृढाभ्यां शस्त्राभ्याम् (उभे) द्वे (भिनत्तु) छिनत्तु (आण्ड्यौ) अण्ड−अण्, ङीप्। अण्डकोशभवौ। आण्डीरोगौ ॥
विषय
ओपशिनं कुरीरिणम्
पदार्थ
१. हे ओषधे! तू (क्लीबम्) = इस बलहीन पुरुष को (ओपशिनं कृधि) = शिरोभूषणवाला कर दे। यह सशक्त बनकर अलंकृत मस्तिष्कवाला हो, अथो और इस पुरुष को (कुरीरिणं कृधि) = प्रशस्त कौवाला कर दे [कुज उच्च-उणा० ४.३३] शक्तिशाली बनकर यह क्रियाशील हो। २. (अथ) = अब (इन्द्रः) = रोगरूप शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला यह उत्तम वैद्य (ग्रावभ्याम्) = पाषाणों द्वारा (अस्य उभे आण्डयौ) = इसके दोनों अण्डकोशों के रोगों को (भिनत्तु) = विदीर्ण कर दे।
भावार्थ
ओषधि-प्रयोग से इस रोगी की क्लीबता दूर हो, यह अलंकृत मस्तिष्कवाला बने, क्रियाशील हो, इसके अण्डकोशों का रोग दूर हो।
भाषार्थ
व्यभिचारी को (क्लीबम्) नपुंसक (कृधि) कर दे, (अथो) और (ओपशिनम्) ओपश वाला, (कुरोरिणम्) कुरीरयुक्त (कृधि) कर दे, (अथ) तदनन्तर (इद्रः) सम्राट् (ग्रावभ्याम्) दो ग्रावाओं द्वारा (अस्य) इसके (उने अण्ड्यौ) दोनों अण्डों के भीतरी भागों को (भिनत्नु) तोड़ दे।
टिप्पणी
[ओपश और कुरीर स्त्रियों के आभूषण हैं। व्यभिचारी के दोनों अण्डों को तोड़कर उसे नपुंसक अर्थात् वीर्यहीन करके, स्त्रियों के दो आभूषण पहिना देने का विधान हुआ है। इन्द्रः= सम्राट्, "इन्द्रश्य सम्राट" (यजु० ८।३७)। अण्डभेदन राजाज्ञा के विना नहीं होना चाहिये,–यह इन्द्र पद द्वारा सूचित होता है। मन्त्र में आण्ड्यों के भेदन का विधान है, आण्ड्यौ का अभिप्राय है दो अण्डों में स्थित नाड़ी समूह। ग्रावभ्याम् = दो पत्थरों से।]
विषय
व्यभिचारी को नपुंसक करने के उपाय।
भावार्थ
हे ओषधे ! तू इस व्यभिचारी पुरुष को (क्लीवं कृधि) नपुंसक बना दे। (अथो) और हे न्यायाधीश या राजन् ! तू इसे दण्ड के रूप में (ओपशिनं) स्त्री के लिबास में, उसके आभरणादि धारण करने वाला कर दे। (अथो कुरीरिणं कृधि) और उसको कुरीर नामक शिर के आभूषण धारण करनेवाला बना दे। (अथ) और (अस्य) इस कामी के (उभे) दोनों (आण्ड्यौ) अण्डकोशों को (इन्द्रः) इन्द्र, राजा (गावभ्यां) पत्थरों से (भिनन्तु) तोड़ दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
क्लीवकर्तुकामोऽथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-२ अनुष्टुभौ। ३ पथ्यापंक्तिः। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Cure for Impotency
Meaning
Make the impotent man actively potent. Make the effeminate man actively virile. O physician, Indra, with the sanative, ground and energised, cure both his seminal glands, removing the obstruction.
Translation
May you make him impotent and eunuch and female; then make him wearing a woman's head-dress (kuririnam) - may the resplendent one crush both of his testicles (Andyau) with two pressing-stones (grava-bhyam)
Translation
Let this make the impotent man potent and make him active. Let the powerful physician with instrument which are strong and firm like stone operate both testicles of the man (who has hydroceal).
Translation
O medicine make an imbecile person serviceable and fit for work. O famous physician, remove the defect of both the testicles of this patient with stone like strong instruments.
Footnote
The doctor should operate upon the testicles of the patient with strong instruments and cure him of his disease.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(क्लीबम्) म० १। निर्बलम् (कृधि) कुरु (ओपशिनम्) म० १। समन्तादुपयोगिनम् (अथो) अपि च (कुरीरिणम्) अ० ५।३१।२। कृञ उच्च। उ० ४।३३। डुकृञ् करणे−ईरन्, तत इनि। कर्मवन्तम् (अथ) पुनः (अस्य) रोगिणः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् वैद्यः (ग्रावभ्याम्) अ० ३।१०।५। पाषाणवद् दृढाभ्यां शस्त्राभ्याम् (उभे) द्वे (भिनत्तु) छिनत्तु (आण्ड्यौ) अण्ड−अण्, ङीप्। अण्डकोशभवौ। आण्डीरोगौ ॥
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