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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 138 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 138/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - नितत्नीवनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - क्लीबत्व सूक्त
    66

    ये ते॑ ना॒ड्यौ दे॒वकृ॑ते॒ ययो॒स्तिष्ठ॑ति॒ वृष्ण्य॑म्। ते ते॑ भिनद्मि॒ शम्य॑या॒मुष्या॒ अधि॑ मु॒ष्कयोः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये इति॑ । ते॒ । ना॒ड्यौ᳡ । दे॒वकृ॑ते॒ इति॑ दे॒वऽकृ॑ते । ययो॑: । तिष्ठ॑ति । वृष्ण्य॑म् । ते इति॑ । ते॒ । भि॒न॒द्मि॒ । शम्य॑या । अ॒मुष्या॑: । अधि॑ । मु॒ष्कयो॑: ॥१३८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ते नाड्यौ देवकृते ययोस्तिष्ठति वृष्ण्यम्। ते ते भिनद्मि शम्ययामुष्या अधि मुष्कयोः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये इति । ते । नाड्यौ । देवकृते इति देवऽकृते । ययो: । तिष्ठति । वृष्ण्यम् । ते इति । ते । भिनद्मि । शम्यया । अमुष्या: । अधि । मुष्कयो: ॥१३८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 138; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    निर्बलता हटाने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे रोगी !] (ये) जो (ते) तेरी (नाड्यौ) दो नाडियाँ (देवकृते) मद अर्थात् उन्माद से पीड़ित हैं और (ययोः) जिन दोनों में (वृष्ण्यम्) ढीलापन (तिष्ठति) स्थित है। (ते) तेरे लिये (ते) उन दोनों [नाड़ियों] को (अमुष्याः) उस [स्वस्थ नाड़ी] से अलग (मुष्कयोः) दोनों अण्डकोशों में (शम्यया) शान्तिकारक शम्या [हल के जुये के कील के समान] शस्त्र से (अधि) अधिकारपूर्वक (भिनद्मि) मैं छेदता हूँ ॥४॥

    भावार्थ

    वैद्यराज विचारपूर्वक अन्य मर्म नाड़ियों को छोड़कर अण्डकोश की रोगग्रस्त नाड़ियों को छेद कर स्वस्थ करे ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(ये) (ते) तुभ्यम् (नाड्यौ) आण्ड्यौ−म० २। (देवकृते) दिवु क्रीडामदादिषु−अच्+कृञ् हिंसायाम्−क्त। मदेनोन्मादेन हिंसितम् (ययोः) नाड्योः (तिष्ठति) वर्तते (वृष्ण्यम्) कनिन् युवृषितक्षि०। उ० १।१५६। इति वृष शक्तिबन्धने−कनिन्। खलयवमाषतिलवृष०। पा० ५।१।७। इति वृषन्−यत्। वृष्णः शिथिलस्य भावो वृष्ण्यं शैथिल्यम् (ते) नाड्यौ (ते) त्वदर्थम् (भिनद्मि) छिनद्मि (शम्यया) शम शान्तौ आलोचने च−यत्, टाप्। शम्या=युगकीलकः−अमर १९।१४। शान्तिकरेण युगकीलतुल्यशस्त्रेण (अमुष्याः) तस्या नाड्याः पृथक् (अधि) अधिकृत्य (मुष्कयोः) अण्डकोशयोर्मध्ये ॥

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    विषय

    सात विकृत वीर्य-नाड़ियों का छेदन

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (ते) = तेरी (नाङचौ) = दो नाड़ियाँ (देवकृते) = [द्वि क्रिडायाम्-कुज हिंसायाम्] विषय क्रीड़ा के कारण हिंसित-सी हो गई है, (ययोः वृष्ण्यम् तिष्ठति) = जिनमें वीर्य की स्थिति है, (ते) = तेरी (ते) = उन हिंसित नाड़ियों को (अधिमुष्कयो:) = अण्डकोशों के ऊपर (अमुष्याः) = उस स्वस्थ नाड़ी (शम्यया) = युगकीलक-तुल्य शस्त्र के द्वारा (भिनधि) = अलग करता हूँ। इन नाड़ियों के पार्थक्य के द्वारा विषय-उन्माद को दूर करता हूँ।

    भावार्थ

    यदि विषय-क्रीड़ा के कारण वीर्यवाहिनी नाड़ियाँ दूषित हो गई हैं, तो वैद्य उनका छेदन करके इस रोगी को विषय-उन्मादशून्य करने का प्रयत्न करे।

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    भाषार्थ

    (ते) तेरी (ये) जो (देवकृते) परमेश्वर निर्मित (नाड्यौ) दो नाड़ियां हैं, (ययोः) जिन दो में (वृष्ण्यम्) वीर्य (तिष्ठति) स्थिति को प्राप्त करता है, (ते) तेरी (ते) उन दोनों का, (शम्यया) शम्या काम वाली शम्या कील द्वारा, (अमुष्याः अधि) उस शिला पर स्थापित (मुष्कयोः) दो अण्डों में संलग्न (ते) तेरी (ते) उन दो नाड़ियों का (भिनद्मि) मैं भेदन करता हूँ।

    टिप्पणी

    [नाड्यौ= नडवत् सछिद्र दो शुक्रवह् नाड़ियां। शम्या= सम्भवतः शमी वृक्ष के काष्ठ द्वारा निर्मित, अथवा भोगवासना को शान्त कर देने वाला कील। अमुष्याः अधि= अमुष्याः प्रसिद्धायाः शिलायाः अधि उपरि (सायण)। मन्त्र (२) में "ग्रावभ्याम" द्वारा दो पत्थरों का कथन हुआ है, इसका स्पष्टीकरण मन्त्र (५) में हुआ है।

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    विषय

    व्यभिचारी को नपुंसक करने के उपाय।

    भावार्थ

    (ये नाड्यौ) जो दोनों नाड़ियां (देवकृते) विधाता, ईश्वर ने बनाई हैं, (ययोः) जिन दो नाड़ियों में (वृष्ण्यम्) वीर्य (तिष्ठति) रहता है, हे नरपशो ! (ते) तेरी (ते) उन दोनों को (अधि-मुष्कयोः) जो कि अण्डकोशों के ऊपर हैं (शम्यया) लकड़ी के दण्डे से (भिनद्मि) तोड़ डालूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    क्लीवकर्तुकामोऽथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-२ अनुष्टुभौ। ३ पथ्यापंक्तिः। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure for Impotency

    Meaning

    In the two natural seminal ducts in which resides sexual fluidity, there on the seminal glands I open the flow with the surgical pin.

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    Translation

    Your two vessels (nadyau) made by the bounties of Nature (devakrte), and in which the semen (vrsnyam) lies - crush those both of yours, placed just above the two testicles, on this stone with this stick. (Samyayd amusya)

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    Translation

    O patient! I the expert of surgery operate your testicles with the instrument which gives relief separating from the nerve connected with vital part of these two blood vassels which are affected with madness and which there has looseness.

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    Translation

    O patient, thy two veins cause pain through insanity, and are full of slackness. Leaving aside the healthy vein, I operate upon them, above the testicles, with the aid of a healing instrument!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(ये) (ते) तुभ्यम् (नाड्यौ) आण्ड्यौ−म० २। (देवकृते) दिवु क्रीडामदादिषु−अच्+कृञ् हिंसायाम्−क्त। मदेनोन्मादेन हिंसितम् (ययोः) नाड्योः (तिष्ठति) वर्तते (वृष्ण्यम्) कनिन् युवृषितक्षि०। उ० १।१५६। इति वृष शक्तिबन्धने−कनिन्। खलयवमाषतिलवृष०। पा० ५।१।७। इति वृषन्−यत्। वृष्णः शिथिलस्य भावो वृष्ण्यं शैथिल्यम् (ते) नाड्यौ (ते) त्वदर्थम् (भिनद्मि) छिनद्मि (शम्यया) शम शान्तौ आलोचने च−यत्, टाप्। शम्या=युगकीलकः−अमर १९।१४। शान्तिकरेण युगकीलतुल्यशस्त्रेण (अमुष्याः) तस्या नाड्याः पृथक् (अधि) अधिकृत्य (मुष्कयोः) अण्डकोशयोर्मध्ये ॥

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