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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 138 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 138/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - नितत्नीवनस्पतिः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - क्लीबत्व सूक्त
    70

    क्लीब॑ क्ली॒बं त्वा॑करं॒ वध्रे॒ वध्रिं॑ त्वाकर॒मर॑सार॒सं त्वा॑करम्। कु॒रीर॑मस्य शी॒र्षणि॒ कुम्बं॑ चाधि॒निद॑ध्मसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्लीब॑ । क्ली॒बम् । त्वा॒ । अ॒क॒र॒म् । वध्रे॑ । वध्रि॑म् । त्वा॒ । अ॒क॒र॒म् । अर॑स । अ॒र॒सम् । त्वा॒ । अ॒क॒र॒म् । कु॒रीर॑म् । अ॒स्य॒। शी॒र्षाणि॑ । कुम्ब॑म् । च॒ । अ॒धि॒ऽनिद॑ध्मसि ॥१३८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्लीब क्लीबं त्वाकरं वध्रे वध्रिं त्वाकरमरसारसं त्वाकरम्। कुरीरमस्य शीर्षणि कुम्बं चाधिनिदध्मसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्लीब । क्लीबम् । त्वा । अकरम् । वध्रे । वध्रिम् । त्वा । अकरम् । अरस । अरसम् । त्वा । अकरम् । कुरीरम् । अस्य। शीर्षाणि । कुम्बम् । च । अधिऽनिदध्मसि ॥१३८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 138; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    निर्बलता हटाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (क्लीब) हे निर्बल करनेवाले रोग ! (त्वा) तुझको मैंने (क्लीबम्) निर्बल (अकरम्) कर दिया है, (वध्रे) हे बल को बाँधनेवाले रोग ! (त्वा) तुझको (वध्रिम्) शक्तिहीन (अकरम्) मैंने कर दिया है, (अरस) हे नीरस करनेवाले रोग ! (त्वा) तुझे (अरसम्) नीरस (अकरम्) मैंने कर दिया है। (अस्य) इस [स्वस्थ] पुरुष के (शीर्षणि) शिर पर (कुरीरम्) कर्म सामर्थ्य (च) और (कुम्बम्) विस्तृत आभूषण (अधिनिदध्मसि) हम अधिकारपूर्वक रखते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य बलहीन क्रियाहीन रोगियों को स्वस्थ और उत्साही बनावें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(क्लीब) हे निर्बलकर रोग (क्लीबम्) निर्बलम् (त्वा) (अकरम्) अकार्षम् (वध्रे) अ० ३।९।२। हे शक्तिबन्धक रोग (वध्रिम्) शक्तिहीनम् (अरस) हे नीरसकर (अरसम्) रसहीनम्। निर्वीर्यम् (कुरीरम्)−म० २। कर्मसामर्थ्यम् (अस्य) स्वस्थस्य (शीर्षणि) शिरसि (कुम्बम्) कुबि आच्छादने−अच्। विस्तृतं भूषणं (च) (अधिनिदध्मसि) अधिकृत्य स्थापयामः ॥

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    विषय

    कुरीरं, कुम्बम्

    पदार्थ

    १. वैद्य रोग को सम्बोधित करते हुए कहता है-क्लीब-हे निर्बलता के रोग! त्वा क्लीबम् अकरम्-तुझे निर्बल करता हूँ। (वध्रे) = हे शक्तिबन्धक रोग! (त्वा वधिम् अकरम्) = तुझे शक्तिहीन करता हूँ। हे (अरस) = नीरस [शुष्क] करनेवाले रोग! मैंने (त्वा अरसम् अकरम्) = तुझे नीरस कर दिया है। २. इसप्रकार रोग को नीरस करके (अस्य) = इस पुरुष के जीवन में कुरीरम-क्रियाशीलता को (च) = तथा (शीर्षणि) = मस्तिष्क में (कुम्बम्) = शत्रुओं के आक्रमण से बचानेवाली सुगहन बाढ़ को (अधिनिदध्मसि) = हम स्थापित करते हैं।

    भावार्थ

    क्लीबता को दूर करके वैद्य रोगी को स्वस्थ कर इसे खुब क्रियाशील व ज्ञानवाला बनाता है।

     

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    भाषार्थ

    (क्लीब) हे नपुंसक ! (त्वा) तुझे (क्लीबम्) नपुंसक (अकरम्) मैंने कर दिया है, (वध्रे) हे बधिया! (त्वा) तुझे (वध्रिम्) बधिया [षण्डक] (अकरम्) मैंने कर दिया है, (अरस) हे वीर्यरस विहीन ! (त्वा) तुझे (अरसम्) इस रस से विहीन (अकरम्) मैंने कर दिया। (अस्य) इसके (शीर्षणि अधि) सिर पर (कुरीरम्, कुम्बम्) ये दो स्त्री आभूषण (निदध्मसि) हम स्थापित करते हैं।

    टिप्पणी

    [कुरीर और कुम्ब स्त्रियों के सिरों के आभूषण हैं।] बध्रिः = Eunuch।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure for Impotency

    Meaning

    O impotent man, I have cured the impotence. O debilitated, I have cured the debility. O cold and frigid, I have cured the frigidity. We restore activity, excitation and desire into the brain centres of this patient.

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    Translation

    O impotent, I have made you impotent. O eunuch (vadhri), have made you eunuch. O semenless, I have made you semenless. We put a woman’s head-dress (kuririnam) on his head and the hair-ornmament (kumbam) also .

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    Translation

    I, the physician make this impotency impotent, I make the debility devoid of strength, I make this dryness deficient of dryness, I put on the head of the healthy man the capability perseverance and ornament for decoration.

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    Translation

    O strength consuming disease, I make thee devoid of strength. O power wasting disease I make thee powerless. O Vigor exhausting disease, I deprive thee of vigor. We adorn the head of this healthy person with strength to work, and luster of an ornament!

    Footnote

    I: A skilled doctor.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(क्लीब) हे निर्बलकर रोग (क्लीबम्) निर्बलम् (त्वा) (अकरम्) अकार्षम् (वध्रे) अ० ३।९।२। हे शक्तिबन्धक रोग (वध्रिम्) शक्तिहीनम् (अरस) हे नीरसकर (अरसम्) रसहीनम्। निर्वीर्यम् (कुरीरम्)−म० २। कर्मसामर्थ्यम् (अस्य) स्वस्थस्य (शीर्षणि) शिरसि (कुम्बम्) कुबि आच्छादने−अच्। विस्तृतं भूषणं (च) (अधिनिदध्मसि) अधिकृत्य स्थापयामः ॥

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