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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 53/ मन्त्र 6
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः, बृहस्पतिः, अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
    48

    आ ते॑ प्रा॒णं सु॑वामसि॒ परा॒ यक्ष्मं॑ सुवामि ते। आयु॑र्नो वि॒श्वतो॑ दधद॒यम॒ग्निर्वरे॑ण्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ते॒ । प्रा॒णम् । सु॒वा॒म॒सि॒ । परा॑ । यक्ष्म॑म् । सु॒वा॒मि॒ । ते॒ । आयु॑: । न॒: । वि॒श्वत॑: । द॒ध॒त् । अ॒यम् । अ॒ग्नि: । वरे॑ण्य: ॥५५.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ ते प्राणं सुवामसि परा यक्ष्मं सुवामि ते। आयुर्नो विश्वतो दधदयमग्निर्वरेण्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । ते । प्राणम् । सुवामसि । परा । यक्ष्मम् । सुवामि । ते । आयु: । न: । विश्वत: । दधत् । अयम् । अग्नि: । वरेण्य: ॥५५.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 53; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (ते) तेरे (प्राणम्) प्राण को (आ सुवामसि) हम अच्छे प्रकार आगे बढ़ाते हैं, और (ते) तेरे (यक्ष्मम्) राजरोग को (परा सुवामि) मैं दूर निकालता हूँ। (अयम्) यह (वरेण्यः) स्वीकरणीय (अग्निः) जाठराग्नि (नः) हमारे (आयुः) आयु को (विश्वतः) सब प्रकार (दधत्) पुष्ट करे ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य पुरुषार्थपूर्वक निर्बलता आदि रोगों को नाश करके अपना जीवन सब प्रकार सुफल करें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(आ) समन्तात् (ते) तव (प्राणम्) जीवनसामर्थ्यम् (सुवामसि) षू प्रेरणे। वयं प्रेरयामः (परा) दूरे (यक्ष्मम्) राजरोगम् (सुवामि) प्रेरयामि (ते) तव (आयुः) जीवनम् (नः) अस्माकम् (विश्वतः) सर्वतः (दधत्) दधातेर्लेटि, अडागमः। पोषयेत् (अयम्) (अग्निः) जाठराग्निः (वरेण्यः) अ० ७।१४।४। स्वीकरणीयः। सम्भजनीयः ॥

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    विषय

    नीरोगता व दीर्घजीवन

    पदार्थ

    १. हे आयुष्काम पुरुष! (ते) = तेरे (प्राणम्) = प्राण को (आसुवामसि) = शरीर में समन्तात् प्रेरित करते हैं, और इसप्रकार (ते यक्ष्मम्) = तेरे रोग को (परासुवामि) = पराङ्मुख प्रेरित करते हैं। २. (अयम) = यह (वरेण्यः) = वरणीय [संभजनीय] (अग्नि:) = अग्रणी प्रभु (न:) = हमारे लिए (विश्वतः) = सब और से, सब दुष्टिकोणों से (आयुः दधत्) = दीर्घजीवन धारण करे।

    भावार्थ

    प्राणशक्ति के ठीक से कार्य करने से हमारे शरीर नीरोग हों। प्रभु की उपासना करते हुए हम दीर्घजीवी बनें।

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    भाषार्थ

    (ते) तेरे (प्राणम्) प्राण को (आ सुवामसि) हम तेरी ओर प्रेरित करते हैं, (ते) तेरे (यक्ष्मम्) यक्ष्मा आदि रोग को (परा सुवामि) मैं पराङ् मुख प्रेरित करता हूं। (वरेण्यः) वरणीय (अयम्) यह (अग्निः) यज्ञाग्नि (नः) हमारे रोगी की (आयुः) आयु को (विश्वतः) सब प्रकार से (दधत्) पुनः स्थापित कर दे।

    टिप्पणी

    [सुवामसि, सुवामि= षू प्रेरणे (तुदादिः)]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Good Health and Age

    Meaning

    O man, we inspire and vitalise your pranic energy from strength to strength. We devitalise and throw out your consumptive negativities. May this Agni, vital heat and energy of health, cherished and adorable, bring us health and long age from all sides in all ways.

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    Translation

    We bring your vital breath to you. We drive the wasting disease away from you. May this Lord adorable and desirable grant us long life in every respect.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.55.6AS PER THE BOOK

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    Translation

    O man! send you back your vital breath which you draw, I drive away consumption far from you, may this bodily fire which is most excellent in its power preserve our life from all sides.

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    Translation

    I send thee back thy vital breath; I drive consumption far from thee. May digestive fire, most excellent, sustain our life to full length.

    Footnote

    Full length: Hundred years.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(आ) समन्तात् (ते) तव (प्राणम्) जीवनसामर्थ्यम् (सुवामसि) षू प्रेरणे। वयं प्रेरयामः (परा) दूरे (यक्ष्मम्) राजरोगम् (सुवामि) प्रेरयामि (ते) तव (आयुः) जीवनम् (नः) अस्माकम् (विश्वतः) सर्वतः (दधत्) दधातेर्लेटि, अडागमः। पोषयेत् (अयम्) (अग्निः) जाठराग्निः (वरेण्यः) अ० ७।१४।४। स्वीकरणीयः। सम्भजनीयः ॥

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