अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 6
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - सर्वशीर्षामयापाकरणम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मनिवारण सूक्त
54
यस्य॑ भी॒मः प्र॑तीका॒श उ॑द्वे॒पय॑ति॒ पूरु॑षम्। त॒क्मानं॑ वि॒श्वशा॑रदं ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । भी॒म: । प्र॒ति॒ऽका॒श: । उ॒त्ऽवे॒पय॑ति । पुरु॑षम् । त॒क्मान॑म् । वि॒श्वऽशा॑रदम् । ब॒हि: । नि: । म॒न्त्र॒या॒म॒हे॒ ॥१३.६॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्य भीमः प्रतीकाश उद्वेपयति पूरुषम्। तक्मानं विश्वशारदं बहिर्निर्मन्त्रयामहे ॥
स्वर रहित पद पाठयस्य । भीम: । प्रतिऽकाश: । उत्ऽवेपयति । पुरुषम् । तक्मानम् । विश्वऽशारदम् । बहि: । नि: । मन्त्रयामहे ॥१३.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
समस्त शरीर के रोग नाश का उपदेश। इस सूक्त का मिलान अ० का० २ सूक्त ३३ से करो।
पदार्थ
(यस्य) जिस [ज्वर] का (भीमः) भयानक (प्रतिकाशः) स्वरूप (पुरुषम्) पुरुष को (उद्वेपयति) कँपा देता है। [उस] (विश्वशारदम्) सब शरीर में चकत्ते करनेवाले (तक्मानम्) ज्वर को (बहिः) बाहिर... म० ५ ॥६॥
भावार्थ
जैसे उत्तम वैद्य निदान पूर्व बाहिरी और भीतरी रोगों का नाश करके मनुष्यों को हृष्ट-पुष्ट बनाता है, वैसे ही विद्वान् लोग विचारपूर्वक अविद्या को मिटा कर आनन्दित होते हैं ॥१॥ यही भावार्थ २ से २२ तक अगले मन्त्रों में जानो ॥
टिप्पणी
६−(यस्य) तक्मनः (भीमः) भयानकः (प्रतिकाशः) काशृ दीप्तौ-घञ्। दर्शनम्। स्वरूपम् (उद्वेपयति) कम्पायते (पुरुषम्) (तक्मानम्) अ० १।२५।१। कृच्छ्रजीवनकारकं ज्वरम् (विश्वशारदम्) शार दौर्बल्ये-अच्, यद्वा शॄ हिंसायाम्-घञ्। सर्वस्मिन् शरीरे शरं कर्बूरवर्णं ददातीति तम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
ज्वरादि को दूर करना
पदार्थ
१. (यस्य) = जिसका (भीमः) = भयानक (प्रतीकाश:) = स्वरूप ही (पूरुषम् उद्वेषयति) = पुरुष को कम्पित कर देता है, ऐसे (तक्मानम्) = दुःखदायी ज्वर को (विश्वशारदम्) = [शार दौर्बल्ये] सब अङ्गों को निर्बल करनेवाले घर को (बहिः निर्मन्त्रयामहे) = बाहर निमन्त्रित करते हैं। (य:) = जो रोग करू (अनुसर्पति) = जंघाओं की ओर बढ़ता है, (अथो) = और (गवीनिके एति) = मूत्राशय के समीप "गवीनिका' नामक नाड़ियों में पहुँच जाता है, उस (यक्ष्मम्) = रोग को (ते अन्त: अड़ेभ्य:) = तेरे अन्दर के अङ्गों से बाहर आमन्त्रित करते हैं। २. (यदि) = यदि (बलासम्) = [बल अस् क्षेपणे] शरीर के बल का नाशक कफ़ रोग (कामात) = हमारे इच्छाकृत कर्मों से (अकामात्) = बिना कामना के बाह्य जलवायु के विकार से (हृदयात् परि) = हृदय के समीप (जायते) = उत्पन्न हो जाए तो उसे (हृदः अनेभ्यः) = हृदय के साथ सम्बद्ध अङ्गों से बाहर निकालते हैं। (ते अङ्गेभ्य:) = तेरै अङ्गों से (हरिमाणम्) = पीलिया रोग को, (उदरात् अन्त:) = पेट के भीतर होनेवाले (अप्वाम) = उदर रोग को (आत्मनः अन्तः) = शरीर के भीतर से (यक्ष्मोधाम्) = यक्ष्मा रोग के अंशों को रखनेवाले रोग को (बहि: निर्मन्त्रयामहे) = बाहर निकाल दें।
भावार्थ
शरीर के अन्दर उत्पन्न हो जानेवाले 'चर, यक्ष्मा, पीलिया, जलोदर व यक्ष्मोधा' आदि रोगों को दूर करके हम नौरोगता के सुख का अनुभव करें।
भाषार्थ
(यस्य) जिस की (प्रतीकाशः) चमक (भीमः) भयानक है, (पुरुषम्) पुरुष को (उद्धेपयति) कम्पा देती है, उस (विश्वशारदम्) सब प्रकार के सर्दी के (तक्मानम्) कष्टदायक ज्वर को (बहिः निर्मन्त्रयामहे) हम चिकित्सक पृथक कर देते हैं (१)।
टिप्पणी
[प्रतीकाशः = प्रति + काशृ (दीप्तौ)। विश्वशारदम् = सर्दी लगकर हो जाने वाला मलेरिया बुखार]
विषय
शरीर के रोगों का निवारण।
भावार्थ
(यस्य) जिसका (भीमः) भयानक (प्रतीकाशः) स्वरूप ही (पुरुषम्) पुरुष को (उद्वेपयति) कंपा देता है ऐसे (तक्मानम्) दुःखदायी (विश्व-शारदम्) सब वर्षों और ऋतुओं में होने वाले ज्वर को हम शरीर से (बहिः निर्मन्त्रयामहे) बाहर ही रोक दें। उसे शरीर में प्रवेश न करने दें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिराः ऋषिः। सर्वशीर्षामयापाकरणं देवता। १, ११, १३, १४, १६, २० अनुष्टुभः। १२ अनुष्टुब्गर्भाककुमती चतुष्पादुष्णिक। १५ विराट् अनुष्टुप्, २१ विराट पथ्या बृहती। २२ पथ्यापंक्तिः। द्वाविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Cure of Diseases
Meaning
The terrible fever whose onslaught shakes the patient all over and lasts for the whole year, we cure and expel with proper diagnosis and treatment.
Translation
Whose awful aspect makes a man tremble violently, that fever, full of all the chill, we expel by our consultation.
Translation
O man ! I, the physician with careful treatment drive out from you the fever of all autumn whose terrible attack makes the man quiver.
Translation
The malady whose awful look makes a man quiver with alarm, fever that prevails in each season, we charm away with exertion.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(यस्य) तक्मनः (भीमः) भयानकः (प्रतिकाशः) काशृ दीप्तौ-घञ्। दर्शनम्। स्वरूपम् (उद्वेपयति) कम्पायते (पुरुषम्) (तक्मानम्) अ० १।२५।१। कृच्छ्रजीवनकारकं ज्वरम् (विश्वशारदम्) शार दौर्बल्ये-अच्, यद्वा शॄ हिंसायाम्-घञ्। सर्वस्मिन् शरीरे शरं कर्बूरवर्णं ददातीति तम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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