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  • यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 10
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    हिर॑ण्यपाणिमू॒तये॑ सवि॒तार॒मुप॑ह्वये। स चेत्ता॑ दे॒वता॑ प॒दम्॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हिर॑ण्यपाणि॒मिति॒ हिर॑ण्यऽपाणिम्। ऊ॒तये॑। स॒वि॒तार॑म्। उप॑। ह्व॒ये॒। सः। चेत्ता॑। दे॒वता॑। प॒दम् ॥१० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्यपाणिमूतये सवितारमुपह्वये । स चेत्ता देवता पदम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यपाणिमिति हिरण्यऽपाणिम्। ऊतये। सवितारम्। उप। ह्वये। सः। चेत्ता। देवता। पदम्॥१०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 22; मन्त्र » 10
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    Translation -
    For preservation, I invoke the divine Creator, imbued with golden radiance. Only realization of His nature leads one to the final destination. (1)

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