Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 27

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 27/ मन्त्र 11
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - इळा, सरस्वती, भारती छन्दः - षट्पदानुष्टुब्गर्भा परातिजगती सूक्तम् - अग्नि सूक्त

    वन॑स्प॒तेऽव॑ सृजा॒ ररा॑णः। त्मना॑ दे॒वेभ्यो॑ अ॒ग्निर्ह॒व्यं श॑मि॒ता स्व॑दयतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वन॑स्पते । अव॑ । सृ॒ज॒ । ररा॑ण: । त्मना॑ । दे॒वेभ्य॑: । अ॒ग्नि: । ह॒व्यम् । श॒मि॒ता । स्व॒द॒य॒तु॒ ॥२७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वनस्पतेऽव सृजा रराणः। त्मना देवेभ्यो अग्निर्हव्यं शमिता स्वदयतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वनस्पते । अव । सृज । रराण: । त्मना । देवेभ्य: । अग्नि: । हव्यम् । शमिता । स्वदयतु ॥२७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 27; मन्त्र » 11

    Translation -
    Let this Vanaspati (the fire of yajna) which is given of various things by nature give us the profits of the yajna. Let this peaceful fire with its power consume the oblation offered for the other yajna-devas.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top