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अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 16/ मन्त्र 4
सूक्त - चातनः
देवता - मन्त्रोक्ता
छन्दः - ककुम्मत्यनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुबाधन सूक्त
यदि॑ नो॒ गां हंसि॒ यद्यश्वं॒ यदि॒ पूरु॑षम्। तं त्वा॒ सीसे॑न विध्यामो॒ यथा॒ नो ऽसो॒ अवी॑रहा ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । न॒: । गाम् । हंसि॑ । यदि॑ । अश्व॑म् । यदि॑ । पुरु॑षम् । तम् । त्वा॒ । सीसे॑न । वि॒ध्या॒म॒: । यथा॑ । न॒: । अस॑: । अवी॑रऽहा ॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषम्। तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नो ऽसो अवीरहा ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । न: । गाम् । हंसि । यदि । अश्वम् । यदि । पुरुषम् । तम् । त्वा । सीसेन । विध्याम: । यथा । न: । अस: । अवीरऽहा ॥
अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 16; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(यदि) यदि (न:) हमारी (गाम् ) गौ की (हंसि) तू हिंसा करता है, (यदि अश्वम्) यदि अश्व की, (यदि पूरुषम् ) और यदि पुरुष [ की हिंसा करता है] तो (तम् त्वा) उस तुझको (विध्याम: ) हम वींधते हैं, (यथा) जिस प्रकार से (नो असः) न तू हो (अवीरहा) अवीरजन का हनन करनेवाला।१
टिप्पणी -
[विध्यामः पद द्वारा वींधने का कथन हुआ है, जिससे यह सीस है, सीसे की गोली ।] [१. वीर हैं सैनिक; अवीर हैं गौ, अश्व तथा प्रजा के पुरुष आदि ।]