Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 1 > सूक्त 16

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
    सूक्त - चातनः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुबाधन सूक्त

    सीसा॒याध्या॑ह॒ वरु॑णः॒ सीसा॑या॒ग्निरुपा॑वति। सीसं॑ म॒ इन्द्रः॒ प्राय॑च्छ॒त्तद॒ङ्ग या॑तु॒चात॑नम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सीसा॑य । अधि॑ । आ॒ह॒ । वरु॑ण: । सीसा॑य । अ॒ग्नि: । उप॑ । अ॒व॒ति॒ । सीस॑म् । मे॒ । इन्द्र॑: । प्र । अ॒य॒च्छ॒त् । तत् । अ॒ङ्ग । या॒तु॒ऽचात॑नम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सीसायाध्याह वरुणः सीसायाग्निरुपावति। सीसं म इन्द्रः प्रायच्छत्तदङ्ग यातुचातनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सीसाय । अधि । आह । वरुण: । सीसाय । अग्नि: । उप । अवति । सीसम् । मे । इन्द्र: । प्र । अयच्छत् । तत् । अङ्ग । यातुऽचातनम् ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 16; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (सीसाय) सीसे के प्रयोग के लिये (वरुणः१) राष्ट्र के पति ने ( अध्याह) अधिकारपूर्वक कहा है, (सीसाय) सीसे के प्रयोग के लिये (अग्निः) अग्रणी अर्थात् प्रधानमन्त्री (उपावति) स्वयं उपस्थित होकर हमारी रक्षा करता है। (इन्द्रः१) सम्राट् ने (मे) मुझ प्रजाजन को (सीसम्, प्रायच्छत्) सीसा प्रदान किया है, (अङ्ग) हे प्रिय ! (तत्) वह सीसा (यातुचातनम्) यातनाकारियों का नाशक है। (चातयतिर्नाशने), (यास्क ६। ३०) सीस= Lead धातु।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top