अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
सूक्त - दुःस्वप्ननासन
देवता - प्राजापत्या गायत्री
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
अन्त॑कोऽसिमृ॒त्युर॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठअन्त॑क: । अ॒सि॒ । मृ॒त्यु : । अ॒सि॒ ॥५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्तकोऽसिमृत्युरसि ॥
स्वर रहित पद पाठअन्तक: । असि । मृत्यु : । असि ॥५.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
हे सुस्वप्न ! तू (अन्तकः) दुःष्वप्न और दुष्यप्न्य का अन्त करने वाला (असि) है, (मृत्युः) उन की मृत्यु कर देने वाला (असि) है ।
टिप्पणी -
[अन्तकः= अन्तं करोतीति]