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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 6/ मन्त्र 4
    सूक्त - उषा,दुःस्वप्ननासन देवता - प्राजापत्या अनुष्टुप् छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    यं द्वि॒ष्मोयश्च॑ नो॒ द्वेष्टि॒ तस्मा॑ एनद्गमयामः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । द्वि॒ष्म: । यत् । च॒ । न॒: । द्वेष्टि॑ । तस्मै॑ । ए॒न॒त् । ग॒म॒या॒म॒: ॥६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यं द्विष्मोयश्च नो द्वेष्टि तस्मा एनद्गमयामः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । द्विष्म: । यत् । च । न: । द्वेष्टि । तस्मै । एनत् । गमयाम: ॥६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 6; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (यत्) जो दुष्वप्न्य अर्थात् दुःष्वप्न का दृश्य (नः) हम प्रजाजनों के प्रति (द्वेष्टि) द्वेष करता है, हमें कष्ट देता है, (च) और इस कारण (यम् = यत्) जिस दुष्वप्न्य को (द्विष्मः) हम अप्रिय जानते हैं, (एनद्) इस दुष्वप्न्य को (तस्मै) उस के लिये अर्थात् द्वेषभावना सम्पन्न तथा शाप देने के स्वभाव वाले व्यक्ति के प्रति ही (गमयामः) हम प्रेषित करते हैं।

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