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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 10

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 10/ मन्त्र 9
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त

    शं नो॒ अदि॑तिर्भवतु व्र॒तेभिः॒ शं नो॑ भवन्तु म॒रुतः॑ स्व॒र्काः। शं नो॒ विष्णुः॒ शमु॑ पू॒षा नो॑ अस्तु॒ शं नो॑ भ॒वित्रं॒ शम्व॑स्तु वा॒युः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। अदि॑तिः। भ॒व॒तु॒। व्र॒तेभिः॑। शम्। नः॒। भ॒व॒न्तु॒। म॒रुतः॑। सु॒ऽअ॒र्काः। शम्। नः॒। विष्णुः॑। शम्। ऊं॒ इति॑। पू॒षा। नः॒। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। भ॒वित्र॑म्। शम्। ऊं॒ इति॑। अ॒स्तु॒। वा॒युः ॥१०.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नो अदितिर्भवतु व्रतेभिः शं नो भवन्तु मरुतः स्वर्काः। शं नो विष्णुः शमु पूषा नो अस्तु शं नो भवित्रं शम्वस्तु वायुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। अदितिः। भवतु। व्रतेभिः। शम्। नः। भवन्तु। मरुतः। सुऽअर्काः। शम्। नः। विष्णुः। शम्। ऊं इति। पूषा। नः। अस्तु। शम्। नः। भवित्रम्। शम्। ऊं इति। अस्तु। वायुः ॥१०.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 10; मन्त्र » 9

    भाषार्थ -
    (अदितिः) अविनाशिनी वेदवाणी (नः) हमारे (व्रतेभिः) व्रतनिर्देशों द्वारा हमें (शम्) शान्ति तथा सुख देनेवाली हो, (स्वर्काः) प्रखर सौर दीप्तियों वाली (मरुतः) मानसून वायुएँ (नः) हमें (शं भवन्तु) शान्ति तथा सुख देनेवाली हों। (विष्णुः) व्याप्त किरणों वाला सूर्य (नः) हमें शान्तिदायक तथा सुखदायक हो, (पूषा) पौष्टिक अन्न प्रदान करनेवाली पृथिवी (उ) निश्चय से (नः) हमें (शम्) शान्ति और सुख देनेवाली (अस्तु) हो। (भवित्रम्) भवित्र (नः) हमें (शम्) शान्ति तथा सुख देवे, (वायुः) वायु (उ) निश्चय से (शम् अस्तु) शान्ति तथा सुख देवे।

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