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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 10

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 10/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त

    शं नः॒ सोमो॑ भवतु॒ ब्रह्म॒ शं नः॒ शं नो॒ ग्रावा॑णः॒ शमु॑ सन्तु य॒ज्ञाः। शं नः॒ स्वरू॑णां मि॒तयो॑ भवन्तु॒ शं नः॑ प्र॒स्वः शम्व॑स्तु॒ वेदिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। सोमः॑। भ॒व॒तु॒। ब्रह्म॑। शम्। नः॒। शम्। नः॒। ग्रावा॑णः। शम्। ऊं॒ इति॑। स॒न्तु॒। य॒ज्ञाः। शम्। नः॒। स्वरू॑णाम्। मि॒तयः॑। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। प्र॒ऽस्वः᳡। शम्। ऊं॒ इति॑। अ॒स्तु॒। वेदिः॑ ॥१०.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नः सोमो भवतु ब्रह्म शं नः शं नो ग्रावाणः शमु सन्तु यज्ञाः। शं नः स्वरूणां मितयो भवन्तु शं नः प्रस्वः शम्वस्तु वेदिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। सोमः। भवतु। ब्रह्म। शम्। नः। शम्। नः। ग्रावाणः। शम्। ऊं इति। सन्तु। यज्ञाः। शम्। नः। स्वरूणाम्। मितयः। भवन्तु। शम्। नः। प्रऽस्वः। शम्। ऊं इति। अस्तु। वेदिः ॥१०.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 10; मन्त्र » 7

    भाषार्थ -
    (सोमः १) जल (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक (भवतु) हो। (ब्रह्म) ब्रह्मप्रतिपादक वेदमन्त्र (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक हों, (ग्रावाणः) वेदविद्या के विद्वान् (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक (भवन्तु) हों। (प्रस्वः) यज्ञिक प्रेरणाएँ (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक हों। (स्वरूणाम्) यज्ञों के (मितयः) यथार्थज्ञान (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक हों, (वेदिः) यज्ञभूमि, यज्ञशाला तथा यज्ञकुण्ड (उ) निश्चय से (शम्) हमें शान्तिदायक तथा सुखदायक (अस्तु) हो।

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