अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 29/ मन्त्र 8
दह॑ दर्भ स॒पत्ना॑न्मे॒ दह॑ मे पृतनाय॒तः। दह॑ मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॒ दह॑ मे द्विष॒तो म॑णे ॥
स्वर सहित पद पाठदह॑। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। दह॑। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। दह॑। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। दह॑। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२९.८॥
स्वर रहित मन्त्र
दह दर्भ सपत्नान्मे दह मे पृतनायतः। दह मे सर्वान्दुर्हार्दो दह मे द्विषतो मणे ॥
स्वर रहित पद पाठदह। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। दह। मे। पृतनाऽयतः। दह। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। दह। मे। द्विषतः। मणे ॥२९.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 29; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(दर्भ) हे शत्रुविदारक, (मणे) शिरोमणि सेनापति! तू (मे) मेरे (सपत्नान्) आन्तरिक-विद्रोहियों को (दह) दग्ध कर दे। (मे) मेरे राष्ट्र पर (पृतनायतः) सेना द्वारा आक्रमण चाहनेवालों को (दह) दग्ध कर दे। (मे) मेरे (सर्वान्) सब (दुर्हार्द्रः) दुष्ट-हार्दिक भावनाओं वालों को (दह) दग्ध कर दे। (मे) मेरे (द्विषतः) द्वेषी=अमित्रों को (दह) दग्ध कर दे।