अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 47/ मन्त्र 3
ये ते॑ रात्रि नृ॒चक्ष॑सो द्र॒ष्टारो॑ नव॒तिर्नव॑। अ॑शी॒तिः सन्त्य॒ष्टा उ॒तो ते॑ स॒प्त स॑प्त॒तिः ॥
स्वर सहित पद पाठये। ते॒। रा॒त्रि॒। नृ॒ऽचक्ष॑सः। द्र॒ष्टारः॑। न॒व॒तिः। नव॑। अ॒शी॒तिः। सन्ति॑। अ॒ष्टौ। उ॒तो इति॑। ते॒। स॒प्त। स॒प्त॒तिः ॥४७.३॥
स्वर रहित मन्त्र
ये ते रात्रि नृचक्षसो द्रष्टारो नवतिर्नव। अशीतिः सन्त्यष्टा उतो ते सप्त सप्ततिः ॥
स्वर रहित पद पाठये। ते। रात्रि। नृऽचक्षसः। द्रष्टारः। नवतिः। नव। अशीतिः। सन्ति। अष्टौ। उतो इति। ते। सप्त। सप्ततिः ॥४७.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 47; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(रात्रि) हे रात्रि! (नृचक्षसः) मनुष्यों पर दृष्टि रखनेवाले (ये) जो (ते) तेरे (नवतिः नव) ९९ (द्रष्टारः) द्रष्टा हैं, (अशीतिः अष्टौ) ८८ (सन्ति) द्रष्टा हैं, (उत उ) और (ते) तेरे (सप्त सप्ततिः) ७७ द्रष्टा हैं॥