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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 9/ मन्त्र 5
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - पञ्चपदा पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - शान्ति सूक्त

    इ॒मानि॒ यानि॒ पञ्चे॑न्द्रि॒याणि॒ मनः॑षष्ठानि मे हृ॒दि ब्रह्म॑णा॒ संशि॑तानि। यैरे॒व स॑सृ॒जे घो॒रं तैरे॒व शान्ति॑रस्तु नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मानि॑। यानि॑। पञ्च॑। इ॒न्द्रि॒याणि॑। मनः॑ऽषष्ठानि। मे॒। हृ॒दि। ब्रह्म॑णा। सम्ऽशि॑तानि। यैः। ए॒व। स॒सृ॒जे। घो॒रम्। तैः। ए॒व। शान्तिः॑। अ॒स्तु॒। नः॒ ॥९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमानि यानि पञ्चेन्द्रियाणि मनःषष्ठानि मे हृदि ब्रह्मणा संशितानि। यैरेव ससृजे घोरं तैरेव शान्तिरस्तु नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमानि। यानि। पञ्च। इन्द्रियाणि। मनःऽषष्ठानि। मे। हृदि। ब्रह्मणा। सम्ऽशितानि। यैः। एव। ससृजे। घोरम्। तैः। एव। शान्तिः। अस्तु। नः ॥९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    (मनःषष्ठानि) छठे मन सहित (यानि) जो (इमानि) ये (पञ्चेन्द्रियाणि) पाँच इन्द्रियाँ, (मे) मेरे (हृदि) हृदय में वर्त्तमान (ब्रह्मणा) परमेश्वर द्वारा (संशितानि) तनूकृत की जाती हैं, (यैः एव) जिनके द्वारा ही (घोरम्) घोरकर्म (ससृजे) किया गया है, (तैः एव) उनके द्वारा ही (नः) हमें (शान्तिः अस्तु) शान्ति प्राप्त हो।

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