अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शं नो॑ मि॒त्रः शं वरु॑णः॒ शं वि॒वस्वा॒ञ्छमन्त॑कः। उ॒त्पाताः॒ पार्थि॑वा॒न्तरि॑क्षाः॒ शं नो॑ दि॒विच॑रा॒ ग्रहाः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। मि॒त्रः। शम्। वरु॑णः। शम्। वि॒वस्वा॑न्। शम्। अन्त॑कः। उ॒त्ऽपाताः॑। पार्थि॑वा। आ॒न्तरि॑क्षाः। शम्। नः॒। दि॒विऽच॑राः। ग्रहाः॑ ॥९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो मित्रः शं वरुणः शं विवस्वाञ्छमन्तकः। उत्पाताः पार्थिवान्तरिक्षाः शं नो दिविचरा ग्रहाः ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। मित्रः। शम्। वरुणः। शम्। विवस्वान्। शम्। अन्तकः। उत्ऽपाताः। पार्थिवा। आन्तरिक्षाः। शम्। नः। दिविऽचराः। ग्रहाः ॥९.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
परमेश्वर की कृपा से (मित्रः) दिन (नः) हमें (शम्) शान्ति प्रदान करे। (वरुणः) रात्री (शम्) शान्ति प्रदान करे। (विवस्वान्) अन्धकारविनाशक सूर्य (शम्) शान्ति प्रदान करे। (अन्तकः) मृत्यु (शम्) शान्तरूप हो। (पार्थिवाः) पृथिवी के (आन्तरिक्षाः) और अन्तरिक्ष के (उत्पाताः) उपद्रव शान्त हों, अर्थात् क्लेशदायक न हों। (दिविचराः) द्युलोक में विचरनेवाले (ग्रहाः) पृथिवी आदि प्रसिद्ध ८ ग्रह (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हों।
टिप्पणी -
[मित्रः वरुणः= “अहोरात्रौ मित्रावरुणौ” (तां० २५.१०.१०)। मन्त्र ६ में परमेश्वर के भिन्न-भिन्न गुणधर्मों का स्मरण कर परमेश्वर से शान्ति की प्रार्थना की गई है। परमेश्वर की कृपा हो जाने पर परमेश्वराधिष्ठित प्राकृतिक रचनाएँ भी शान्तिप्रदान करनेवाली हो जाती हैं। यह मन्त्र ७ में कहा है। पार्थिव उपद्रव हैं—भूचाल आदि। और अन्तरिक्ष उपद्रव हैं—अवर्षा, अतिवर्षा विद्युत्पात आदि।