अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 14/ मन्त्र 5
सूक्त - चातनः
देवता - शालाग्निः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - दस्युनाशन सूक्त
यदि॒ स्थ क्षे॑त्रि॒याणां॒ यदि॑ वा॒ पुरु॑षेषिताः। यदि॒ स्थ दस्यु॑भ्यो जा॒ता नश्य॑ते॒तः स॒दान्वाः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । स्थ । क्षे॒त्रि॒याणा॑म् । यदि॑ । वा॒ । पुरु॑षऽइषिता: । यदि॑ । स्थ । दस्यु॑ऽभ्य: । जा॒ता: । नश्य॑त । इ॒त: । स॒दान्वा॑: ॥१४.५॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि स्थ क्षेत्रियाणां यदि वा पुरुषेषिताः। यदि स्थ दस्युभ्यो जाता नश्यतेतः सदान्वाः ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । स्थ । क्षेत्रियाणाम् । यदि । वा । पुरुषऽइषिता: । यदि । स्थ । दस्युऽभ्य: । जाता: । नश्यत । इत: । सदान्वा: ॥१४.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 14; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(सदान्वाः) हे सदा कष्ट की सूचिकाओ ! (यदि स्थ) यदि तुम हो (क्षेत्रियाणाम्) शारीरिक अंगों सम्बन्धी, (यदि वा) अथवा (पुरुषेषिताः) रुग्ण पुरुष के संग द्वारा प्रेषित हुई, (यदि स्थ) यदि तुम हो (दस्युभ्यः) उपक्षय अर्थात् निर्बल क्षयरोगों से (जाताः) उत्पन्न, तो तुम (इतः) इस शरीर से (नश्यत) नष्ट हो जाओ।
टिप्पणी -
[ये, शारीरिक रोगों के कारणीभूत स्त्रीजातिक रोगकीटाणु हैं, जिन्हेंकि मन्त्र (४) में कथित उपायों द्वारा निकाल फेंका है। दस्युभ्यः = तसु उपक्षये, दसु च (दिवादिः)। सदान्वाः= सदा णू स्तवने (तुदादिः), सदा कष्टों का स्तवन करनेवाली, कथन करनेवाली सूचना देनेवाली।]