Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 104

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 104/ मन्त्र 4
    सूक्त - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१०४

    त्वं दा॒ता प्र॑थ॒मो राध॑साम॒स्यसि॑ स॒त्य ई॑शान॒कृत्। तु॑विद्यु॒म्नस्य॒ युज्या॑ वृणीमहे पु॒त्रस्य॒ शव॑सो म॒हः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । दा॒ता । प्र॒थ॒म: । राध॑साम् । अ॒सि॒ । असि॑ । स॒त्य: । ई॒शा॒न॒ऽकृत् ॥ तु॒वि॒ऽद्यु॒म्नस्य॑ । युज्या॑ । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ । पु॒त्रस्य॑ । शव॑स: । म॒ह: ॥१०४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं दाता प्रथमो राधसामस्यसि सत्य ईशानकृत्। तुविद्युम्नस्य युज्या वृणीमहे पुत्रस्य शवसो महः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । दाता । प्रथम: । राधसाम् । असि । असि । सत्य: । ईशानऽकृत् ॥ तुविऽद्युम्नस्य । युज्या । आ । वृणीमहे । पुत्रस्य । शवस: । मह: ॥१०४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 104; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    हे परमेश्वर! (त्वम्) आप ही (राधसाम्) सम्पत्तियों के (प्रथमः) सर्वप्रथम (दाता असि) दाता है। आप (सत्यः असि) सत्यस्वरूप हैं, (ईशानकृत्) आप हमें पापों पर नियन्त्रण करने योग्य करते हैं। जैसे (तुविद्युम्नस्य) महाधनिक (पुत्रस्य युज्या) पुत्र के धन का (वृणीमहे) हम वरण करते हैं, उपयोग करते हैं वैसे (महः शवसः) आपके महाबल तथा महा-आध्यात्मिक धन का हम वरण करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top