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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 13/ मन्त्र 4
ऐभि॑रग्ने स॒रथं॑ याह्य॒र्वाङ्ना॑नार॒थं वा॑ वि॒भवो॒ ह्यश्वाः॑। पत्नी॑वतस्त्रिं॒शतं॒ त्रींश्च॑ दे॒वान॑नुष्व॒धमा व॑ह मा॒दय॑स्व ॥
स्वर सहित पद पाठआ । ए॒भि॒: । अ॒ग्ने॒ । स॒ऽरथ॑म् । या॒हि॒ । अ॒र्वा॒ङ् । ना॒ना॒ऽर॒थम् । वा॒ । वि॒ऽभव॑: । हि । अश्वा॑: ॥ पत्नी॑ऽवत: । त्रिं॒शत॑म् । त्रीन् । च॒ । दे॒वान् । अ॒नु॒ऽस्व॒धम् । आ । व॒ह॒ । मा॒दय॑स्व ॥१३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
ऐभिरग्ने सरथं याह्यर्वाङ्नानारथं वा विभवो ह्यश्वाः। पत्नीवतस्त्रिंशतं त्रींश्च देवाननुष्वधमा वह मादयस्व ॥
स्वर रहित पद पाठआ । एभि: । अग्ने । सऽरथम् । याहि । अर्वाङ् । नानाऽरथम् । वा । विऽभव: । हि । अश्वा: ॥ पत्नीऽवत: । त्रिंशतम् । त्रीन् । च । देवान् । अनुऽस्वधम् । आ । वह । मादयस्व ॥१३.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 13; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(अग्ने) हे राष्ट्रग्रणी प्रधानमन्त्री! (एभिः) इन अधिकारियों के साथ आप (सरथम्) रथारूढ़ होकर (अर्वाङ्) इन प्रजाजनों की ओर (आयाहि) आइए। (नानारथम्) आपके अधिकार में नाना रथ हैं। (वा) तथा आपके पास (विभवः) प्रभूत सम्पत्तियाँ हैं, (अश्वाः) और नाना अश्व हैं। हे अग्रणी प्रधानमन्त्री! (पत्नीवतः) सपत्नीक (त्रिशतं त्रीन् च देवान्) ३३ देवों को (आ वह) हम प्रजाजनों की ओर आने में प्रेरित किया कीजिए। और वे (अनु स्वधम्) अपनी-अपनी रुचि के अनुसार, प्रजा द्वारा सत्कार में समर्पित अन्न का ग्रहण करके (मादयस्व) अपने आपको प्रसन्न करें, तथा प्रजाजनों को भी प्रसन्न किया करें।
टिप्पणी -
[राष्ट्र की दृष्टि से आधिभौतिक ३३ देवता निम्नलिखित हैं—८ जो वसु-उपाधिवाले स्नातक हैं, ११ जो कि रुद्र-उपाधिवाले स्नातक, तथा १२ आदित्य-उपाधिवाले स्नातक, तथा १ इन्द्र अर्थात् सम्राट्, और १ बृहस्पति अर्थात् सेना का अध्यक्ष। राष्ट्र के शासन के लिए ये ३३ मुख्य अधिकारी नियत करने चाहिएँ। प्रधानमन्त्री ३४वां अधिकारी है। २४ वर्षों की आयु तक जिन्होंने ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्याध्ययन किया है, उन्हें ‘वसु कहते हैं। ४४ वर्षों की आयु तक तथा ४८ वर्षों की आयु तक ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्याध्ययन करनेवाले को ‘रुद्र’ तथा ‘आदित्य’ कहते हैं। ये सभी सदाचारी, संयमी, तपस्वी तथा नाना विद्याओं में निष्णात होते हैं। अतः शासन-व्यवस्था को ठीक प्रकार चला सकते हैं। ये सब विवाहित होने चाहिएँ, ताकि सर्वसाधारण गृहस्थ-प्रजाजनों की आवश्यकताओं को जानकर ठीक-ठीक शासन-व्यवस्था करें। ये सब देव अर्थात् दिव्यगुणोंवाले होने चाहिएँ।]