अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 140/ मन्त्र 2
आ नू॒नम॒श्विनो॒रृषि॒ स्तोमं॑ चिकेत वा॒मया॑। आ सोमं॒ मधु॑मत्तमं घ॒र्मं सि॑ञ्चा॒दथ॑र्वणि ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नू॒नम् । अ॒श्विनो॑: । ऋषि॑: । स्तोम॑म् । चि॒के॒त॒ । वा॒मया॑ ॥ आ । सोम॑म् । मधु॑मत्ऽतमम् । घ॒र्मम् । सि॒ञ्चा॒त् । अथ॑र्वणि ॥१४०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नूनमश्विनोरृषि स्तोमं चिकेत वामया। आ सोमं मधुमत्तमं घर्मं सिञ्चादथर्वणि ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नूनम् । अश्विनो: । ऋषि: । स्तोमम् । चिकेत । वामया ॥ आ । सोमम् । मधुमत्ऽतमम् । घर्मम् । सिञ्चात् । अथर्वणि ॥१४०.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 140; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(ऋषिः) ऋषिकोटि का राष्ट्रपति, (वामया) निज सुन्दर पत्नी के साथ वर्तमान होकर, (अश्विनोः) दोनों अश्वियों के (स्तोमम्) कर्त्तव्य नानाविध कार्यों को, (नूनम्) निश्चयपूर्वक, (आ चिकेत) पूर्णरूपेण ठीक-ठीक जानता है; तथा (अथर्वणि) उपद्रवों और विप्लवों से रहित स्थिरीभूत राष्ट्र में (मधुमत्तमम्) अत्यन्त मधुर जल और दुग्ध आदि पदार्थों, तथा (घर्मम्) यज्ञिय-भावनाओं की (आ सिञ्चात्) सर्वत्र वर्षा करता है।
टिप्पणी -
[ऋषिः=मन्त्रों “अश्विनौ” पद द्वारा प्रधान-मन्त्री तथा प्रधान-सेनापति का वर्णन हुआ है, और “ऋषि” पद द्वारा राष्ट्रपति का। स्तोमम्=उणादिकोष में इसका अर्थ “संघात” भी दिया गया है। मन्त्र में “क्रियाकलाप” अर्थ संगत होता है। अथर्वणि=मन्त्र में इस पद का अभिप्राय “अचलकूटस्थ परमेश्वर के निमित्त”—यह अर्थ भी सम्भव है। इस सम्बन्ध में अथर्व০ ३.४.६ का मन्त्र निम्नलिखित है—“स त्वायमह्वत् स्वे सधस्थे स देवान् यक्षत् स उ कल्पयाद् विशः”। अर्थात् हे राष्ट्र के मुखिया! उस परमेश्वर ने तेरा आह्वान किया है अपनी गद्दी पर, वह तू राष्ट्र के देवों को राष्ट्र-यज्ञ करने के योग्य बना, और वह तू प्रजाजनों को सामर्थ्यवान् कर।]