Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 36

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 36/ मन्त्र 10
    सूक्त - भरद्वाजः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३६

    आ सं॒यत॑मिन्द्र णः स्व॒स्तिं श॑त्रु॒तूर्या॑य बृह॒तीममृ॑ध्राम्। यया॒ दासा॒न्यार्या॑णि वृ॒त्रा करो॑ वज्रिन्त्सु॒तुका॒ नाहु॑षाणि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । सम्ऽयत॑म् । इ॒न्द्र॒ । न॒: । स्व॒स्तिम् । श॒त्रु॒ऽतूर्या॑य । बृ॒ह॒तीम् । अमृ॑ध्राम् ॥ यया॑ । दासा॑नि । आर्या॑णि । वृ॒त्रा । कर॑: । व॒ज्रि॒न् । सु॒ऽतुका॑ । नाहु॑षाणि ॥३६.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ संयतमिन्द्र णः स्वस्तिं शत्रुतूर्याय बृहतीममृध्राम्। यया दासान्यार्याणि वृत्रा करो वज्रिन्त्सुतुका नाहुषाणि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । सम्ऽयतम् । इन्द्र । न: । स्वस्तिम् । शत्रुऽतूर्याय । बृहतीम् । अमृध्राम् ॥ यया । दासानि । आर्याणि । वृत्रा । कर: । वज्रिन् । सुऽतुका । नाहुषाणि ॥३६.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 36; मन्त्र » 10

    भाषार्थ -
    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (शत्रुतूर्याय) कामादि शत्रुओं के विनाश के लिए, आप (नः) हमें (संयतम्) इन्द्रिय-संयम तथा (बृहतीं स्वस्तिम्) महाकल्याण का मार्ग (आ करः) प्राप्त कराइए (अमृध्राम्) ऐसा संयम तथा महाकल्याण मार्ग प्राप्त कराइए जिससे कामादि के साथ पुनः संग्राम करना न पड़े। (वज्रिन्) हे न्याय वज्रधारी! ऐसा संयम और स्वस्तिमार्ग प्राप्त कराइए, (यया) जिस द्वारा कि (दासानि) उपक्षयकारी तथा (वृत्रा) उन्नति को रोकनेवाले (नाहुषाणि) मनुष्यों को भी, आप (आर्याणि) आर्य अर्थात् ईश्वरभक्त (करः) कर देते हैं। (सुतुका) और उनकी सन्तानों को भी आप श्रेष्ठ आर्य बना देते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top