अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 49/ मन्त्र 2
श॒क्रो वाच॒मधृ॑ष्टा॒योरु॑वाचो॒ अधृ॑ष्णुहि। मंहि॑ष्ठ॒ आ म॑द॒र्दिवि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठश॒क्र: । वा॒च॒म् । अधृ॑ष्टा॒य । उरु॑वा॒च: । अधृ॑ष्णुहि ॥ मंहि॑ष्ठ॒: । आ । म॑द॒र्दिवि॑ ॥४९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
शक्रो वाचमधृष्टायोरुवाचो अधृष्णुहि। मंहिष्ठ आ मदर्दिवि ॥
स्वर रहित पद पाठशक्र: । वाचम् । अधृष्टाय । उरुवाच: । अधृष्णुहि ॥ मंहिष्ठ: । आ । मदर्दिवि ॥४९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 49; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
हे उपासक! तू (शक्रः) शक्तिसम्पन्न बन, और (अधृष्टाय) अपराभवनीय परमेश्वर की प्राप्ति के लिए (वाचम्) अपनी स्तुतिवाणियों का आरोहण कर [पूर्व मन्त्र १ से], (उरुवाचः) जैसे कि उच्चस्वरों में सामगानों के गानेवाले सामगानों के स्वरों का आरोहण करते हैं। और (अधृष्णुहि=आधृष्णुहि) अपने पापों का पूर्णतया पराभव कर। तथा (मंहिष्ठः) परमेश्वर के प्रति भक्तिरस प्रदान करता हुआ तू (दिवि) परमेश्वरीय प्रकाश में (आमदः) मस्त हो जा।