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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६

    द॑धि॒ष्वा ज॒ठरे॑ सु॒तं सोम॑मिन्द्र॒ वरे॑ण्यम्। तव॑ द्यु॒क्षास॒ इन्द॑वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द॒धि॒ष्व । ज॒ठरे॑ । सु॒तम् । सोम॑म् । इ॒न्द्र॒ । वरे॑ण्यम् । तव॑ । द्यु॒क्षास॑: । इन्द॑व: ॥६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दधिष्वा जठरे सुतं सोममिन्द्र वरेण्यम्। तव द्युक्षास इन्दवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दधिष्व । जठरे । सुतम् । सोमम् । इन्द्र । वरेण्यम् । तव । द्युक्षास: । इन्दव: ॥६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 6; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    जैसे व्यक्ति अन्न को (जठरे) अपने उदर में धारण करता है, वैसे (इन्द्र) हे परमेश्वर! (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य श्रेष्ठ (सुतं सोमम्) उत्पन्न भक्तिरस को (दधिष्व) आप अपने में धारण कीजिए। (द्युक्षासः) अध्यात्म-प्रकाश देनेवाले और आध्यात्मिक अन्तरायों का क्षय करनेवाले (इन्दवः) भक्तिरस (तव) आपके लिए हैं।

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