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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 6/ मन्त्र 9
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६

    यद॑न्त॒रा प॑रा॒वत॑मर्वा॒वतं॑ च हू॒यसे॑। इन्द्रे॒ह तत॒ आ ग॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒न्त॒रा । प॒रा॒ऽवत॑म् । अ॒र्वा॒ऽवत॑म् । च॒ । हू॒यसे॑ । इन्द्र॑ ॥ इ॒ह । तत॑: । आ । ग॒हि॒ ॥६.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदन्तरा परावतमर्वावतं च हूयसे। इन्द्रेह तत आ गहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अन्तरा । पराऽवतम् । अर्वाऽवतम् । च । हूयसे । इन्द्र ॥ इह । तत: । आ । गहि ॥६.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 6; मन्त्र » 9

    भाषार्थ -
    (यद्) यतः (परावतम्) पराविद्या और (अर्वावतम्) अपराविद्या से (अन्तरा) रहित, अर्थात् केवल भक्तिपरायण उपासकों द्वारा भी आप (हूयसे) पुकारे जाते हैं, प्रार्थित होते हैं, अतः (इह) इस भक्तिपरायण उपासक में भी (इन्द्र) हे परमेश्वर! आप (आ गहि) प्रकट हूजिए। (ततः) आप सर्वत्र वितत हैं, विस्तृत व्यापक हैं।

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