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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 78

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 78/ मन्त्र 2
    सूक्त - शंयुः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७८

    न घा॒ वसु॒र्नि य॑मते दा॒नं वाज॑स्य॒ गोम॑तः। यत्सी॒मुप॒ श्रव॒द्गिरः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । च॒ । वसु॑: । नि । य॒म॒ते॒ । दा॒नम् । वाज॑स्य । गोऽम॑त: ॥ यत् । सी॒म् । उप॑ । श्रव॑त् । गिर॑: ॥७८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न घा वसुर्नि यमते दानं वाजस्य गोमतः। यत्सीमुप श्रवद्गिरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । च । वसु: । नि । यमते । दानम् । वाजस्य । गोऽमत: ॥ यत् । सीम् । उप । श्रवत् । गिर: ॥७८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 78; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (गोमतः) पार्थिव सम्पत्तियों, इन्द्रियशक्तियों, तथा वेदवाणियों सम्बन्धी (वाजस्य) बलों और ज्ञानों के (दानम्) दान को—(वसुः) सम्पत्तिशाली, तथा सर्वत्रवासी परमेश्वर—(घ) निश्चय से, (न नियमते) नियमित नहीं करता, अर्थात् इनका दान प्रभूतमात्रा में करता है, (यत्) जबकि वह (सीम्) सर्वव्यापक, (गिरः) हमारी प्रार्थनावाणियों को (उप) हमारे हृदयों के समीप होकर (श्रवत्) सुन लेता है।

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