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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 78/ मन्त्र 1
तद्वो॑ गाय सु॒ते सचा॑ पुरुहू॒ताय॒ सत्व॑ने। शं यद्गवे॒ न शा॒किने॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । व॒: । गा॒य॒ । सु॒ते । सचा॑ । पु॒रु॒ऽहू॒ताय॑ । सत्व॑ने ॥ शम् । यत् । गवे॑ । न । शा॒किने॑ ॥७८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने। शं यद्गवे न शाकिने ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । व: । गाय । सुते । सचा । पुरुऽहूताय । सत्वने ॥ शम् । यत् । गवे । न । शाकिने ॥७८.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 78; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(सुते) भक्तिरस के उत्पन्न हो जाने पर, हे उपासको! (वः) तुम सब (सचा) मिलकर, (पुरुहूताय) बहुतों द्वारा या बहुत नामों द्वारा पुकारे गये, (सत्वने) बलशाली परमेश्वर के लिए, (तत्) उस सामगान को (गाय) गाया करो, जो सामगान कि (गवे न) गानेवाले के सदृश (शाकिने) शक्तिशाली परमेश्वर को भी (शम्) प्रसन्न करे।
टिप्पणी -
[गवे=गावः स्तोतारः (निघं০ ३.१६), गै शब्दे।]