Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
अ॒र्वाङेहि॒ सोम॑कामं त्वाहुर॒यं सु॒तस्तस्य॑ पिबा॒ मदा॑य। उ॑रु॒व्यचा॑ ज॒ठर॒ आ वृ॑षस्व पि॒तेव॑ नः शृणुहि हू॒यमा॑नः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒र्वाङ् । आ । इ॒हि॒ । सोम॑ऽकामम् । त्वा॒ । आ॒ह: । अ॒यम् । सु॒त: । तस्य॑ । पि॒ब॒ । मदा॑य ॥ उ॒रु॒ऽव्यचा॑: । ज॒ठरे॑ । आ । वृ॒ष॒स्व॒ । पि॒ताऽइ॑व । न॒: । शृ॒णु॒हि॒ । हू॒यमा॑न: ॥८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्वाङेहि सोमकामं त्वाहुरयं सुतस्तस्य पिबा मदाय। उरुव्यचा जठर आ वृषस्व पितेव नः शृणुहि हूयमानः ॥
स्वर रहित पद पाठअर्वाङ् । आ । इहि । सोमऽकामम् । त्वा । आह: । अयम् । सुत: । तस्य । पिब । मदाय ॥ उरुऽव्यचा: । जठरे । आ । वृषस्व । पिताऽइव । न: । शृणुहि । हूयमान: ॥८.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
हे परमेश्वर! (अर्वाङ् एहि) हमारी ओर कृपादृष्टि कीजिए। (सोमकामं त्वा आहुः) आपके सम्बन्ध में उपासक कहते हैं कि आप भक्तिरस की कामना करते हैं। (अयम्) यह भक्तिरस (सुतः) निष्पन्न हुआ है, (तस्य) उसका आप (मदाय) अपनी प्रसन्नता के लिए (पिब) पान कीजिए। (उरुव्यचाः) आप अतिविस्तारवाले हैं, सर्वगत हैं, (जठरे) वृद्धावस्था के कारण कठोर शरीरवाले उपासक पर (आ वृषस्व) आनन्दरस की वर्षा कीजिए। (हूयमानः) बुलाए जाने पर (शृणुहि) मेरी प्रार्थनाओं को सुनिए, (इव पिता) जैसे कि पिता सन्तानों की प्रार्थनाओं को सुनता है।
टिप्पणी -
[उरुव्यचाः=उरु+वि+अञ्च् गतौ। जठरम्=कठिनम् (उणादि कोष ५.३८)।]