अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 93/ मन्त्र 7
त्वमि॑न्द्र स॒जोष॑सम॒र्कं बि॑भर्षि बा॒ह्वोः। वज्रं॒ शिशा॑न॒ ओज॑सा ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । इ॒न्द्र॒ । स॒ऽजोष॑सम् । अ॒र्कम् । बि॒भ॒र्षि॒ । बा॒ह्वो: ॥ वज्र॑म् । शिशा॑न: । ओज॑सा ॥९३.७॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमिन्द्र सजोषसमर्कं बिभर्षि बाह्वोः। वज्रं शिशान ओजसा ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । इन्द्र । सऽजोषसम् । अर्कम् । बिभर्षि । बाह्वो: ॥ वज्रम् । शिशान: । ओजसा ॥९३.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 93; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
जैसे कोई व्यक्ति (बाह्वोः) अपनी बाहुओं में (सजोषसम्) प्रिय पुत्र आदि को धारण करता है, वैसे (इन्द्र) हे परमेश्वर! (त्वम्) आप (अर्कम्) सूर्य को विना बाहुओं के ही (बिभर्षि) धारण कर रहे हैं और आप (ओजसा) निज ओज द्वारा (वज्रम्) अन्धकार आदि के लिए वज्रसमान सूर्य को (शिशानः) ताप से तीखा कर रहे हैं।