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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 93/ मन्त्र 7
    ऋषिः - देवजामयः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-९३
    37

    त्वमि॑न्द्र स॒जोष॑सम॒र्कं बि॑भर्षि बा॒ह्वोः। वज्रं॒ शिशा॑न॒ ओज॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । इ॒न्द्र॒ । स॒ऽजोष॑सम् । अ॒र्कम् । ब‍ि॒भ॒र्षि॒ । बा॒ह्वो: ॥ वज्र॑म् । शिशा॑न: । ओज॑सा ॥९३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमिन्द्र सजोषसमर्कं बिभर्षि बाह्वोः। वज्रं शिशान ओजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । इन्द्र । सऽजोषसम् । अर्कम् । ब‍िभर्षि । बाह्वो: ॥ वज्रम् । शिशान: । ओजसा ॥९३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 93; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर] (ओजसा) पराक्रम से (वज्रम्) वज्र को (शिशानः) तीक्ष्ण करता हुआ (त्वम्) तू (सजोषसम्) प्रीतियुक्त [वा विचारवान्] (अर्कम्) पूजनीय विद्वान् को (बाह्वोः) दोनों भुजाओं पर [जैसे] (बिभर्षि) धारण करता है ॥७॥

    भावार्थ

    परमात्मा दुष्टों का नाश करता हुआ आज्ञाकारी विचारशील विद्वानों को अपने प्रेम की गोद में बिठाकर बढ़ाता है ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(त्वम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सजोषसम्) प्रीत्या विचारेण वा सह वर्तमानम् (अर्कम्) पूजनीयं पण्डितम् (बिभर्षि) धारयसि (बाह्वोः) भुजयोः (वज्रम्) (शिशानः) निश्यन्। तीक्ष्णीकुर्वन् (ओजसा) पराक्रमेण ॥७॥

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    विषय

    सजोषसं अके, ओजसा वज्रम्

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = इन्द्रियों का अधिष्ठाता बननेवाले जीव! (त्वम्) = तू (बाह्वोः) = अपनी भुजाओं में (सजोषसम्) = ओज व उत्साह से युक्त (अर्कम्) = [अर्च पूजायाम्] स्तुत्य सूर्यसम तेज को (बिभर्षि) = धारण करता है। 'प्राणो वा अर्कः' [श० १०.४.१.२३] के अनुसार तू प्राणशक्ति सम्पन्न जीवनवाला बनता है। २. तु (ओजसा) = ओजस्विता के द्वारा (वज्रम्) = अपने वज्र को (शिशान:) = तीक्ष्ण करनेवाला है। 'वज् गतौ' से बना हुआ 'वज' शब्द क्रियाशीलता का वाचक है। ओजस्विता के कारण तेरा जीवन बड़ा क्रियाशील बनता है।

    भावार्थ

    बालक को माता ने उत्साहयुक्त तेजवाला तथा ओजस्वितायुक्त क्रियाशीलता वाला बनाना है।

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    भाषार्थ

    जैसे कोई व्यक्ति (बाह्वोः) अपनी बाहुओं में (सजोषसम्) प्रिय पुत्र आदि को धारण करता है, वैसे (इन्द्र) हे परमेश्वर! (त्वम्) आप (अर्कम्) सूर्य को विना बाहुओं के ही (बिभर्षि) धारण कर रहे हैं और आप (ओजसा) निज ओज द्वारा (वज्रम्) अन्धकार आदि के लिए वज्रसमान सूर्य को (शिशानः) ताप से तीखा कर रहे हैं।

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    विषय

    ईश्वर स्तुति।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (बाह्वोः अर्कम्) बाहुओं से जिस प्रकार वज्र को धारण किया जाता है उसी प्रकार जो (सजोषसम्) सेवनीय गुणों से युक्त (अर्कम्) अर्चनीय स्वरूप को तू (बाह्वोः) बाहु के समान अपने ज्ञान और कर्म के द्वारा (विभर्षि) धारण करता है और (ओजसा) अपने वीर्य पराक्रम से (वज्रं शिशानः) ज्ञानरूप वज्र को और भी तीक्ष्ण करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-३ प्रगाथः ऋषिः। ४-८ देवजामय इन्द्रमातरः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। अष्टर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    You, Indra, bear a united and participative refulgence of personal dignity and social brilliance, keeping the force of your arms and blaze of justice and rectitude fresh and shining by the constant manifestation of your dynamic vigour of personality.

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    Translation

    O Almighty Divinity, you whetting the thunder-bold with might and you hold the lightning that properly’ suits to you.

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    Translation

    O Almighty Divinity, you whetting the thunder-bold with might and you hold the lightning that properly suits to you.

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    Translation

    O Mighty God, thou art the overpowered of all the created things through Thy Power and Energy. He pervades all the places.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(त्वम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सजोषसम्) प्रीत्या विचारेण वा सह वर्तमानम् (अर्कम्) पूजनीयं पण्डितम् (बिभर्षि) धारयसि (बाह्वोः) भुजयोः (वज्रम्) (शिशानः) निश्यन्। तीक्ष्णीकुर्वन् (ओजसा) पराक्रमेण ॥७॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যশালী পরমেশ্বর] (ওজসা) পরাক্রম দ্বারা (বজ্রম্) বজ্রকে (শিশানঃ) তীক্ষ্ণ করে (ত্বম্) তুমি (সজোষসম্) প্রীতিযুক্ত [বা বিচারবান্] (অর্কম্) পূজনীয় বিদ্বানকে (বাহ্বোঃ) বাহুতে [যেন] (বিভর্ষি) ধারণ করো ॥৭॥

    भावार्थ

    পরমাত্মা দুষ্টদের বিনাশ পূর্বক আজ্ঞাকারী বিচারশীল বিদ্বানদের নিজের প্রেমের বন্ধনে বসিয়ে বর্ধিত করেন॥৭॥

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    भाषार्थ

    যেমন কোনো ব্যক্তি (বাহ্বোঃ) নিজের বাহুতে (সজোষসম্) প্রিয় পুত্রাদিকে ধারণ করে, তেমনই (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (ত্বম্) আপনি (অর্কম্) সূর্যকে বিনা বাহুতেই (বিভর্ষি) ধারণ করছেন এবং আপনি (ওজসা) নিজ ওজ দ্বারা (বজ্রম্) অন্ধকারাদির জন্য বজ্রসমান সূর্যকে (শিশানঃ) তাপ দ্বারা তীক্ষ্ণ করছেন।

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