अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 93/ मन्त्र 5
त्वमि॑न्द्र॒ बला॒दधि॒ सह॑सो जा॒त ओज॑सः। त्वं वृ॑ष॒न्वृषेद॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । इ॒न्द्र॒ । बला॑त् । अधि॑ । सह॑स: । जा॒त: । ओज॑स: । त्वम् । वृ॒ष॒न् । वृषा॑ । इत् । अ॒सि॒ ॥९३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमिन्द्र बलादधि सहसो जात ओजसः। त्वं वृषन्वृषेदसि ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । इन्द्र । बलात् । अधि । सहस: । जात: । ओजस: । त्वम् । वृषन् । वृषा । इत् । असि ॥९३.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (त्वम्) तू (बलात्) बल से, (ओजसः) पराक्रम [धैर्य] और (सहसः) जयशीलता से (अधि) अधिक करके (जातः) प्रसिद्ध है। (वृषन्) हे बलवान् ! (त्वम्) तू (वृषा इत्) बलवान् ही (असि) है ॥॥
भावार्थ
परमात्मा अपने अनन्त सामर्थ्य से सबको अपने वश में रखता है ॥॥
टिप्पणी
यह मन्त्र कुछ भेद से सामवेद में भी है-पू० २।३।६ ॥ −(त्वम्) (इन्द्र) (बलात्) (अधि) अधिकृत्य (सहसः) अभिभवनात्। जयशीलत्वात् (जातः) प्रसिद्धः (ओजसः) पराक्रमात्। धैर्यात् (त्वम्) (वृषन्) हे बलवन् (वृषा) बलवान् (इत्) एव (असि) ॥
विषय
बालक को माता की प्रेरणा
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = इन्द्रियों के अधिष्ठाता बननेवाले प्रिय ! (त्वम्) = तू (बलात्) = बल से, (सहसः) = सहस् से–सहनशक्तिवाले बल से तथा (ओजस:) = ओज से (अधिजात: असि) = आधिक्येन प्रसिद्ध हुआ है। तेरा मनोमयकोश'बल व ओज' से सम्पन्न बना है तथा आनन्दमयकोश'सहस्'वाला हुआ है। २. हे (वृषन्) = शक्तिशाली इन्द्र ! (त्वम्) = तू (इत्) = निश्चय से (वृषा असि) = शक्तिशाली है। तूने अपने को शक्ति से सिक्त करना है।
भावार्थ
माता प्रारम्भ से बालक को यही प्रेरणा देती है कि तूने 'बलवान्, ओजस्वी व सहस्वी' बनना है। तूने अवश्य शक्तिशाली होना है।
भाषार्थ
(इन्द्र) हे परमेश्वर! आप (बलात् अधि) शारीरिक बल, और (सहसः) मानसिक साहस, तथा (ओजसः) आध्यात्मिक कोमल भावनाओं से (जातः) प्रकट होते हैं। (वृषन्) हे आनन्दरसवर्षी! आप (इत्) वास्तव में (वृषा) आनन्दरस की वर्षा करते (असि) हैं।
टिप्पणी
[बलात्—शारीरिक बल अर्थात् ब्रह्मचर्य, मानसिक उत्साह, तथा प्रेम, करुणा, मैत्रीभावना, सदा प्रसन्न रहना—आदि आध्यात्मिक साधनाओं द्वारा परमेश्वर का साक्षात्कार होता है। (ओजः=उब्ज आर्जवे=ऋजुपन)।]
विषय
ईश्वर स्तुति।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (त्वं) तू (बलात्) बल से अग्नि के समान (सहसः) शत्रु पराजित करने हारे सैन्यबल से विजेता के समान और (ओजसः) वीर्य एवं पराक्रम से राजा के समान अथवा पुत्र के समान (अधिजातः) और भी अधिक गुणवान वीर्यवान् और पराक्रमी रूप से प्रकट होता है। हे (वृषन्) सुखों के वर्षक ! तू (वृषा इत् असि) साक्षात् मेघ के समान आनन्द धन होकर आनन्द की वर्षा करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-३ प्रगाथः ऋषिः। ४-८ देवजामय इन्द्रमातरः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। अष्टर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
Ruling power, Indra, you have risen high by virtue of your strength, patient courage, and grandeur of personality. Generous as showers of blissful rain, you are mighty, excellent and refulgent as the sun.
Translation
O Almighty God, you are mighty one are strong one You are evinced and manifest from your strength, victory and power.
Translation
O Almighty God, you are mighty one are strong one You are evinced and manifest from your strength, victory and power.
Translation
O Adorable Lord, Thou art is dispeller of clouds of ignorance and darkness, a pervader of all interspace and the upholder of the heavens through thy valour and energy.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र कुछ भेद से सामवेद में भी है-पू० २।३।६ ॥ −(त्वम्) (इन्द्र) (बलात्) (अधि) अधिकृत्य (सहसः) अभिभवनात्। जयशीलत्वात् (जातः) प्रसिद्धः (ओजसः) पराक्रमात्। धैर्यात् (त्वम्) (वृषन्) हे बलवन् (वृषा) बलवान् (इत्) एव (असि) ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ
भाषार्थ
ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মন্] (ত্বম্) তুমি (বলাৎ) বল, (ওজসঃ) পরাক্রম [ধৈর্য] এবং (সহসঃ) জয়শীলতার দ্বারা (অধি) অত্যন্ত (জাতঃ) প্রসিদ্ধ। (বৃষন্) হে বলবান্ ! (ত্বম্) তুমি (বৃষা ইৎ) বলবান্ ই (অসি) হও ॥৫॥
भावार्थ
পরমাত্মা নিজ অনন্ত সামর্থ্য দ্বারা সকলকে নিজের নিয়ন্ত্রণে রাখেন ॥৫॥ এই মন্ত্র সামান্য পরিবর্তিত অবস্থায় সামবেদেও পাওয়া যায় -পূ০ ২।৩।৬ ॥
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! আপনি (বলাৎ অধি) শারীরিক বল, এবং (সহসঃ) মানসিক সাহস, তথা (ওজসঃ) আধ্যাত্মিক কোমল ভাবনা দ্বারা (জাতঃ) প্রকট হন। (বৃষন্) হে আনন্দরসবর্ষী! আপনি (ইৎ) বাস্তবে (বৃষা) আনন্দরসের বর্ষণকারী (অসি) হন।
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