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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 97/ मन्त्र 1
व॒यमे॑नमि॒दा ह्योऽपी॑पेमे॒ह व॒ज्रिण॑म्। तस्मा॑ उ अ॒द्य स॑म॒ना सु॒तं भ॒रा नू॒नं भू॑षत श्रु॒ते ॥
स्वर सहित पद पाठव॒यम् । ए॒न॒म् । इ॒दा । ह्य: । अपी॑पेम । इ॒ह । व॒ज्रिण॑म् ॥ तस्मै॑ । ऊं॒ इति॑ । अ॒द्य । स॒म॒ना । सु॒तम् । भ॒र॒ । आ । नू॒नम् । भू॒ष॒त॒ । श्रु॒ते ॥९७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
वयमेनमिदा ह्योऽपीपेमेह वज्रिणम्। तस्मा उ अद्य समना सुतं भरा नूनं भूषत श्रुते ॥
स्वर रहित पद पाठवयम् । एनम् । इदा । ह्य: । अपीपेम । इह । वज्रिणम् ॥ तस्मै । ऊं इति । अद्य । समना । सुतम् । भर । आ । नूनम् । भूषत । श्रुते ॥९७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 97; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(वयम्) हम उपासकों ने (इह) इस उपासना-यज्ञ में, (वज्रिणम्) पापों के प्रति वज्रधारी (एनम्) इस परमेश्वर को (इद्) ही (आ पीपेम) भक्तिरस पिलाया है। हे उपासक! तू (समना) मनोभावनाओं के साथ (अद्य) आज अर्थात् प्रतिदिन, (तस्मै उ) उसी परमेश्वर के लिए (सुतं भर) उत्पन्न भक्तिरस की भेंट ला। हे उपासको! (श्रुते) वेदों द्वारा परमेश्वर-सम्बन्धी श्रवण कर लेने पर (नूनम्) निश्चयपूर्वक (आ भूषत) स्तुतियों द्वारा इसकी शोभा को बढ़ाओ।