अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 5/ मन्त्र 4
सूक्त - अथर्वा
देवता - सोमः, पर्णमणिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राजा ओर राजकृत सूक्त
सोम॑स्य प॒र्णः सह॑ उ॒ग्रमाग॒न्निन्द्रे॑ण द॒त्तो वरु॑णेन शि॒ष्टः। तं प्रि॑यासं ब॒हु रोच॑मानो दीर्घायु॒त्वाय॑ श॒तशा॑रदाय ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑स्य । प॒र्ण: । सह॑: । उ॒ग्रम् । आ । अ॒ग॒न् । इन्द्रे॑ण । द॒त्त: । वरु॑णेन । शि॒ष्ट: । तम् । प्रि॒या॒स॒म् । ब॒हु । रोच॑मान: । दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑ । श॒तऽशा॑रदाय ॥५.४॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमस्य पर्णः सह उग्रमागन्निन्द्रेण दत्तो वरुणेन शिष्टः। तं प्रियासं बहु रोचमानो दीर्घायुत्वाय शतशारदाय ॥
स्वर रहित पद पाठसोमस्य । पर्ण: । सह: । उग्रम् । आ । अगन् । इन्द्रेण । दत्त: । वरुणेन । शिष्ट: । तम् । प्रियासम् । बहु । रोचमान: । दीर्घायुऽत्वाय । शतऽशारदाय ॥५.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 5; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(इन्द्रेण) परमेश्वर्यवान् परमेश्त्र ने [कृपापूर्वक] (दत्तः) दिया, (वरुणेन) वरुण रूप आचार्य द्वारा (शिष्ट:) शिक्षा तथा अनुशासित, (सोमस्य) सेनाप्रेरक रोनाध्यक्ष का (पर्ण:) पालक, (उग्रम् सहः) उग्रबल रूप सेनापति (आ अगन्) मुझे प्राप्त हुआ है, (तम् प्रियासम्) उसे मैं अपना प्रिय जानूं, (बहु रोचमानः) बहुत प्रदीप्त होता हुआ, (दीर्घायुत्वाय) दीर्घायु के लिये, (शतशारदाय) सो शरद्-ऋतुओं के लिये [सौ वर्षों के लिये।
टिप्पणी -
[वरुण है आचार्य। यथा "आचार्यो वरुणो भूत्वा" (अथर्व० ११।५।१५)। प्रियासम्=प्रिय [नामधातु]+सिप्, अट्, आकार का आगम। रोचमानः प्रदीप्त हुआ "सम्राटों का सम्राट" सेनापति की प्राप्ति के कारण प्रदीप्त हुआ, चमकता हुआ। सोमस्य=सोम है सेनाप्रेरक तथा सेनाध्यक्ष, जोकि युद्ध के लिये सेना के मुख्य भाग में आगे-आगे चलता है [षु प्रेरणे तुदादि:], देखो यजु० (१७।४०)। सेनापति द्वारा सुरक्षित "सम्राटों का सम्राट" सौ वर्षों तक जीवित रहने का अभिलाषी है। सोम और सेनापति दोनों का सम्बन्ध सेना के साथ है। सेनापति को "पर्णः" अर्थात् पालक कहा है, यह सोम का भी पालक है। सेनापति "पर्ण", गुरुकुल आश्रम में रहकर आचार्य द्वारा शिक्षित और अनुशासित हुआ है।]