अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
सूक्त - वेनः
देवता - बृहस्पतिः, आदित्यः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मविद्या सूक्त
इ॒यं पित्र्या॒ राष्ट्र्ये॒त्वग्रे॑ प्रथ॒माय॑ ज॒नुषे॑ भुवने॒ष्ठाः। तस्मा॑ ए॒तं सु॒रुचं॑ ह्वा॒रम॑ह्यं घ॒र्मं श्री॑णन्तु प्रथ॒माय॑ धा॒स्यवे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒यम् । पित्र्या॑ । राष्ट्री॑ । ए॒तु॒ । अग्रे॑ । प्र॒थ॒माय॑ । ज॒नुषे॑ । भु॒व॒ने॒ऽस्था: । तस्मै॑ । ए॒तम् । सु॒ऽरुच॑म् । ह्वा॒रम् । अ॒ह्य॒म् । घ॒र्मम् । श्री॒ण॒न्तु॒ । प्र॒थ॒माय॑ । धा॒स्यवे॑ ॥१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
इयं पित्र्या राष्ट्र्येत्वग्रे प्रथमाय जनुषे भुवनेष्ठाः। तस्मा एतं सुरुचं ह्वारमह्यं घर्मं श्रीणन्तु प्रथमाय धास्यवे ॥
स्वर रहित पद पाठइयम् । पित्र्या । राष्ट्री । एतु । अग्रे । प्रथमाय । जनुषे । भुवनेऽस्था: । तस्मै । एतम् । सुऽरुचम् । ह्वारम् । अह्यम् । घर्मम् । श्रीणन्तु । प्रथमाय । धास्यवे ॥१.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(पित्र्या) पितृरूप ब्रह्मरूपिणी (इयम्) यह प्रजापतिरूप-माता, (राष्ट्री) जोकि ब्रह्माण्ड-राष्ट्र की स्वामिनी है, (भुवनेष्ठाः) पृथिबी-रूपी भुवन में भी स्थित है, (प्रथमाय जनुषे) विस्तृत उत्पत्ति के लिए (अग्रे एतु) आगे आए, उत्पादनार्थ आगे बढ़े। (धास्यवे) जगद्धारण की इच्छावाले (तस्मै प्रथमाय) उस प्राथमिक प्रजापति के लिए (ह्वारम्) अदनयोग्य, (सुरुचम्) उत्तम रुचि के उत्पादक, (अह्यम्) प्रतिदिन के ताजे, (एतम् घर्मम्) इस धारोष्ण दुग्ध को (श्रीणन्तु) ऋत्विक् या गृहस्थी अग्नि-परिपक्व करें।
टिप्पणी -
[पित्र्या=प्रजापतिरूपिणी माता, पितृरूप ब्रह्म का ही द्वितीय रूप है। जैसे ब्रह्म का बर्णन वेदों में पिता और माता के रूप में होता है, बैसे मन्त्र (२) में प्रजापति का वर्णन भी पिता और माता के रूप में हुआ है। इसलिए इसे "राष्ट्री१" द्वारा स्त्रीलिंग में, और "तस्मै, प्रथमाय, धास्यवे" आदि द्वारा पुलिंग में वर्णित किया है। धास्यवे=धा+असुन्+क्यच्+उ (क्याच्छन्दसि)+चतुर्थ्येकवचन। घर्मम्=घृ क्षरणदीप्त्योः (जुहोत्यादिः), दोहा गया ताजा दूध दीप्तिमान तो होता ही है, बह शुक्लरूप भी होता है। ह्वारम्=ह्वरति अत्तिकर्माा (निघं० २।८)। प्रजापति के लिए अग्नि परिपक्व दुग्ध की आहुतियों का वर्णन मन्त्र में हुआ है। श्रीणन्तु=श्रीञ् पाके, पचन्तु, तपन्तु (सायण)।] [१. "राष्ट्री" (अथर्व ४।३०।२)। अथर्व ४।३०।१-८ में मातृरूप में प्रजापति का वर्णन द्रष्टव्य है।]