Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 33

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 33/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - पापनाशन सूक्त

    द्विषो॑ नो विश्वतोमु॒खाति॑ ना॒वेव॑ पारय। अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्विष॑: । न॒: । वि॒श्व॒त॒:ऽमु॒ख॒ । अति॑ । ना॒वाऽइ॑व । पा॒र॒य॒ । अप॑ । न॒: । शोशु॑चत् । अ॒घम् ॥३३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्विषो नो विश्वतोमुखाति नावेव पारय। अप नः शोशुचदघम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्विष: । न: । विश्वत:ऽमुख । अति । नावाऽइव । पारय । अप । न: । शोशुचत् । अघम् ॥३३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 33; मन्त्र » 7

    भाषार्थ -
    (विश्वतोमुख) हे सब ओर मुखोंवाले परमेश्वराग्नि! (न:) हमें (द्विष:) द्वेष-नद से अति (पारय) पार कर, (नावा इव) जैसेकि नौका द्वारा [नदी या समुद्र को] पार किया जाता है। (अप नः शोशुचत् अघम्) परमेश्वराग्नि पापों को अपगत करके, दग्ध करके, उसकी शोचि या परमेश्वराग्नि हमें पवित्र कर देती है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top