अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
सूक्त - भृगुः
देवता - त्रैककुदाञ्जनम्
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - आञ्जन सूक्त
उ॒तासि॑ परि॒पाणं॑ यातु॒जम्भ॑नमाञ्जन। उ॒तामृत॑स्य॒ त्वं वे॒त्थाथो॑ असि जीव॒भोज॑न॒मथो॑ हरितभेष॒जम् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । अ॒सि॒ । प॒रि॒ऽपान॑म् । या॒तु॒ऽजम्भ॑नम् । आ॒ऽअ॒ञ्ज॒न॒ । उ॒त । अ॒मृत॑स्य । त्वम् । वे॒त्थ॒ । अथो॒ इति॑ । अ॒सि॒ । जी॒व॒ऽभोज॑नम् । अथो॒ इति॑ । ह॒रि॒त॒ऽभे॒ष॒जम् ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
उतासि परिपाणं यातुजम्भनमाञ्जन। उतामृतस्य त्वं वेत्थाथो असि जीवभोजनमथो हरितभेषजम् ॥
स्वर रहित पद पाठउत । असि । परिऽपानम् । यातुऽजम्भनम् । आऽअञ्जन । उत । अमृतस्य । त्वम् । वेत्थ । अथो इति । असि । जीवऽभोजनम् । अथो इति । हरितऽभेषजम् ॥९.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(उत) तथा (परिपाणम्) परिरक्षक, परिपालक (असि) तू है. (यातुजम्भनम्) यातनाओं का विनाशक (आञ्जन) हे आञ्जन ! (उत) तथा (त्वम्) तू (अमृतस्य) शीघ्र न मरने या अमृत होने के साधन को (वेत्य) जानता है, (अथो) तथा (जीवभोजनम्) जीवित प्राणियों का तू भोजन है, (अथो) तथा (हरितभेषजम्) शरीर के हरेपन रोग की, तथा विषयों द्वारा हरे गये, विषयोन्मुख हुए आत्मा की औषधि है।
टिप्पणी -
[मंत्र में आञ्जन अर्थात् अञ्जनभस्म१, तथा सर्वत्र अभिव्यक्ति करनेवाले ब्रह्म का वर्णन हुआ है। आञ्जन= आ (सर्वत्र) + अञ्जू"अञ्जू व्यक्ति-म्रक्षण-कान्ति-गतेषु" (रुधादि:); अर्थात् सर्वत्र जगत् की व्यक्ति अर्थात् अभिव्यक्ति करनेवाला ब्रह्म। यातवः=यातना (सायण)। यातनाएँ=कष्ट, पीड़ाएँ। इनके निवारण के लिए आञ्जन अर्थात् अञ्जनभस्म का प्रयोग अभिप्रेत है। शरीर का हरापन पित्त के विवृत हो जाने से होता है। इसके निवारण के लिए भी अञ्जनभस्म का प्रयोग करना चाहिए। मन्त्र में मुख्यरूप में ब्रह्म का वर्णन हुआ है, इसलिए वेत्थ शब्द का प्रयोग हुआ है, और अमृतस्य द्वारा मोक्ष का कथन किया है। अमृत का मुख्य अर्थ मोक्ष है, जिसकी प्राप्ति ब्रह्मोपासना ब्रह्म के प्रति आत्मसमर्पण द्वारा होती है। ब्रह्म भी जीवित प्राणियों अर्थात् ब्रह्मोपासकों का भोजन है, इसलिए ब्रह्म को अन्न कहा है, "अहमन्नम्, अहमन्नादः" (तैत्ति० ३।१०।६)। योगी ब्राह्म-आनन्दरस का पान करते हैं। यह आनन्दरस है 'अन्नम्'। यथा "रसो वै सः, रसं ह्येवायं लब्ध्वा आनन्दी भवति" तैत्ति उप० २।७। ब्रह्म 'अन्नाद' भी है, प्रलय-काल में वह जगद्रूपी अन्न का अदन करता है।] [१. अनक्ति कान्तिमन्तं करोति शरीरम् इति। अञ्जनभस्म द्वारा शरीर की कान्ति बढ़ती है।]