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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 1/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - सविता छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या साम्नी जगती सूक्तम् - अमृतप्रदाता सूक्त

    दो॒षो गा॑य बृ॒हद्गा॑य द्यु॒मद्धे॑ह्याथ॑र्वण। स्तु॒हि दे॒वं स॑वि॒तार॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दो॒षो इत‍ि॑ । गा॒य॒ । बृ॒हत् । गा॒य॒ । द्यु॒ऽमत् । धे॒हि॒ । आथ॑र्वण । स्तु॒हि । दे॒वम् । स॒वि॒तार॑म् ॥१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दोषो गाय बृहद्गाय द्युमद्धेह्याथर्वण। स्तुहि देवं सवितारम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दोषो इत‍ि । गाय । बृहत् । गाय । द्युऽमत् । धेहि । आथर्वण । स्तुहि । देवम् । सवितारम् ॥१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (दोषा उ) रात्री में भी (गाय) [परमेश्वर का] गायन कर (बृहद् गाय) महागान कर,(द्युमत्) दीप्ति वाले ब्रह्म को (धेहि) हृदय में धारण कर। (आथर्वण) हे अचल चित्तवृत्ति वाले ! (सवितारम्, देवम्) सर्वोत्पादक, सर्वेश्वर्यवान्, सर्वप्रेरक देव की (स्तुहि) स्तुति किया कर ।

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