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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 112/ मन्त्र 1
मा ज्ये॒ष्ठं व॑धीद॒यम॑ग्न ए॒षां मू॑ल॒बर्ह॑णा॒त्परि॑ पाह्येनम्। स ग्राह्याः॒ पाशा॒न्वि चृ॑त प्रजा॒नन्तुभ्यं॑ दे॒वा अनु॑ जानन्तु॒ विश्वे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठमा । ज्ये॒ष्ठम् । व॒धी॒त् । अ॒यम् । अ॒ग्ने॒ । ए॒षाम् । मू॒ल॒ऽबर्ह॑णात् । परि॑ । पा॒हि॒ । ए॒न॒म् । स: । ग्राह्या॑: । पाशा॑न् । वि । चृ॒त॒ । प्र॒ऽजा॒नन् । तुभ्य॑म् । दे॒वा: । अनु॑ । जा॒न॒न्तु॒ । विश्वे॑ ॥११२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
मा ज्येष्ठं वधीदयमग्न एषां मूलबर्हणात्परि पाह्येनम्। स ग्राह्याः पाशान्वि चृत प्रजानन्तुभ्यं देवा अनु जानन्तु विश्वे ॥
स्वर रहित पद पाठमा । ज्येष्ठम् । वधीत् । अयम् । अग्ने । एषाम् । मूलऽबर्हणात् । परि । पाहि । एनम् । स: । ग्राह्या: । पाशान् । वि । चृत । प्रऽजानन् । तुभ्यम् । देवा: । अनु । जानन्तु । विश्वे ॥११२.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 112; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(अग्ने) हे सर्वाग्रणी प्रधानमन्त्रि ! (अयम्) यह छोटा भाई (एषाम् ज्येष्ठम्) इन अन्य भाइयों में बड़े भाई का (मा वधोत्) वध न करे, अत: (मूलबर्हणात्) वंश परम्परा के मूलभूत भाई की हिंसा से (एनम्) इसे (परिपाहि) सर्वत: सुरक्षित कर। (प्रजानन्) इस घटना को जानता हुआ तू हे प्रधानमन्त्रि ! इस प्रकार कर कि (सः) वह तू (ग्राह्याः) जकड़ने वाली न्याय व्यवस्था के (पाशान्) फंदों को (विचृत) विशेषतया ग्रथित कर, संगठित कर (तुभ्यम्) इस कार्य में तुझे (विश्वे देवाः) सब दिव्य अधिकारी (अनुजानन्तु) अनुज्ञा दें, स्वीकृति दें।
टिप्पणी -
[छोटे भाई द्वारा ज्येष्ठ भाई के वध की सम्भावना में, अग्रणी को आज्ञा द्वारा छोटे भाई को पाशों में बान्ध दिया है। माता-पिता के स्वर्ग वास हो जाने पर गृह प्रबन्ध ज्येष्ठ भाई के अधिकार में होता है, इसे सहन न कर छोटा भाई उस की हत्या करना चाहता है, इस लिये उसे पाशों में बांध दिया है। परिपाहि= सुरक्षित करने का अभिप्राय है कि इसे बन्दीगृह में सुरक्षित कर, ताकि छोटा भाई यह दुष्कर्म न कर सके। विचृत= वि+चृती हिंसाग्रन्थनयोः (तुदादिः)। मन्त्र में ग्रन्थन अर्थ अभिप्रेत है।]