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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 113/ मन्त्र 1
त्रि॒ते दे॒वा अ॑मृजतै॒तदेन॑स्त्रि॒त ए॑नन्मनु॒ष्येषु ममृजे। ततो॒ यदि॑ त्वा॒ ग्राहि॑रान॒शे तां ते॑ दे॒वा ब्रह्म॑णा नाशयन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठत्रि॒ते । दे॒वा: । अ॒मृ॒ज॒त॒ । ए॒तत् । एन॑: । त्रि॒त: । ए॒न॒त् । म॒नु॒ष्ये᳡षु । म॒मृ॒जे॒ । तत॑: । यदि॑। त्वा॒ । ग्राहि॑: । आ॒न॒शे । ताम् । ते॒ । दे॒वा: । ब्रह्म॑णा । ना॒श॒य॒न्तु॒ ॥११३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रिते देवा अमृजतैतदेनस्त्रित एनन्मनुष्येषु ममृजे। ततो यदि त्वा ग्राहिरानशे तां ते देवा ब्रह्मणा नाशयन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठत्रिते । देवा: । अमृजत । एतत् । एन: । त्रित: । एनत् । मनुष्येषु । ममृजे । तत: । यदि। त्वा । ग्राहि: । आनशे । ताम् । ते । देवा: । ब्रह्मणा । नाशयन्तु ॥११३.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 113; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(देवाः) विद्वानों ने (त्रिते) तीन अवयवों वाले विस्तृत प्रकृतितत्व में (एतत् एनः) इस पाप को (अमृजत) झाड़ कर विशुद्ध कर लिया, (त्रितः)१ त्रित नामक प्रकृतितत्त्व ने (एनत्) इस पाप को (मनुष्येषु) मनुष्यों में (ममृजे) झाड़ कर अपने को विशुद्ध कर लिया। (ततः) उन मनुष्यों में से (यदि) यदि (ग्राहिः) पाप की जकड़न ने (त्वा) तुझे (आ नशे) आ घेरा है, तो (ते ताम्) तेरी उस ग्राही को जकड़न को, (देवाः) वैदिक विद्वान् (ब्रह्मणा) वेदोक्त विधि द्वारा (नाशयन्तु) नष्ट कर दें।
टिप्पणी -
[विद्वांसो वे देवाः (शत० ३।७।३।१०), अर्थात् वैदिक विद्वान्। इन वैदिक विद्वानों ने स्वनिष्ठ पाप को बैदिकविधान द्वारा नष्ट कर दिया और कहा कि पाप प्रकृति तत्त्व का परिणाम है। जीवात्मा तो विशुद्ध है, उस के साथ जब प्रकृति तत्त्व का सम्बन्ध होता है तब जीवात्मा पाप में प्रवृत्त होता है। परन्तु प्रकृति-तत्त्व ने पाप करने में अपराधी मनुष्यों को माना। प्रकृतितत्त्व तो जड़ है। जब चेतन का सम्पर्क जड़ प्रकृति-तत्त्व के साथ होता है तब ही पाप हो सकता है। इस प्रकार पाप करने वाले मनुष्यों के साथ जब संसार में नवागत मनुष्य का सम्पर्क होता है तब उसे भी पापग्राही आ घेरती है। वैदिक विद्वान् वैदिक शिक्षा द्वारा तब उस के पाप को विनष्ट कर देते हैं यह भाव मन्त्र का है। आ नशे= नशत् व्याप्तिकर्मा (निघं० २।१८)। अमृजत, ममृजे= मृजूष शुद्धौ (अदादिः)।] [१. त्रितः = त्रि + तम् (विस्तारे) + (औणादिक), डित्वात् टिलोप:। प्रकृतितत्त्व तीन अवयवों में विस्तृत है, सत्त्व, रजस् और तमस् अवयवों में। ]