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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 129/ मन्त्र 1
भगे॑न मा शांश॒पेन॑ सा॒कमिन्द्रे॑ण मे॒दिना॑। कृ॒णोमि॑ भ॒गिनं॒ माप॑ द्रा॒न्त्वरा॑तयः ॥
स्वर सहित पद पाठभगे॑न । मा॒ । शां॒श॒पेन॑ । सा॒कम् । इन्द्रे॑ण । मे॒दिना॑ । कृ॒णोमि॑ । भ॒गिन॑म् । मा॒ । अप॑ । द्रा॒न्तु॒ । अरा॑तय: ॥१२९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
भगेन मा शांशपेन साकमिन्द्रेण मेदिना। कृणोमि भगिनं माप द्रान्त्वरातयः ॥
स्वर रहित पद पाठभगेन । मा । शांशपेन । साकम् । इन्द्रेण । मेदिना । कृणोमि । भगिनम् । मा । अप । द्रान्तु । अरातय: ॥१२९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 129; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(मेदिना) स्नेही (इन्द्रेण साकम्) विद्युत् के सङ्ग (शांशपेन= शिंशपा + अरण [तस्येदम्]) "शिशपा" वृक्ष सम्बन्धी (भगेन१) ऐश्वर्य द्वारा (मा) मुझ अर्थात् अपने आप को (भगिनम्) ऐश्वर्य वाला (कृणोमि) मैं करता हूं, (अरातयः) अदान आदि शत्रु (मा अप) मुझसे अवगत होकर (द्रान्तु) कुत्सित गति को प्राप्त हों।
टिप्पणी -
[मेदिना= मिदि स्नेहने (चुरादिः), वर्षा जल द्वारा स्निग्ध इन्द्र अर्थात् विद्युत्। यथा "वायुर्वा, इन्द्रो वा मध्यस्थानः" (निरुक्त १०।१, १२।४१)। इन्द्र मध्यस्थानी अर्थात् अन्तरिक्षस्थानी है, अतः विद्युत् है। शांशपेन= शिंशपा की समिधा रूपी भग द्वारा। मा= आहुति प्रदाता मैं, अपने आप को। इन आहुतियों द्वारा विद्यतु की वृद्धि होकर, विद्युत् वर्षा करती है, और ऐश्वर्य बढ़ता है। द्रान्तु= द्रा कुत्सायां गतौ (अदादिः) [अथवा “द्राति गतिकर्मा" (निघं० २।२४), अतः अपद्रान्तु= अपगच्छन्तु। भगेन= ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा॥ "शिशपा" सम्भवतः शीशमवृक्ष है। सभी वृक्ष विद्युत् जन्य वर्षा से उत्पन्न होते हैं। शीशम बहुमूल्य वृक्ष होता है। अतः शीशमरूपी ऐश्वर्य की प्राप्ति से अदान आदि अराति अपगत हो जाते हैं। यह भावना मन्त्र में प्रतीत होती है।] [१. ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा॥]