Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 69/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - बृहस्पतिः, अश्विनौ
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - वर्चस् प्राप्ति सूक्त
गि॒राव॑र॒गरा॑टेषु॒ हिर॑ण्ये॒ गोषु॒ यद्यशः॑। सुरा॑यां सि॒च्यमा॑नायां की॒लाले॒ मधु॒ तन्मयि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठगि॒रौ । अ॒र॒गरा॑टेषु । हिर॑ण्ये । गोषु॑ । यत् ।यश॑: । सुरा॑याम् । सि॒च्यमा॑नायाम् । की॒लाले॑ । मधु॑ । तत् । मयि॑ ॥६९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
गिरावरगराटेषु हिरण्ये गोषु यद्यशः। सुरायां सिच्यमानायां कीलाले मधु तन्मयि ॥
स्वर रहित पद पाठगिरौ । अरगराटेषु । हिरण्ये । गोषु । यत् ।यश: । सुरायाम् । सिच्यमानायाम् । कीलाले । मधु । तत् । मयि ॥६९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 69; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(गिरौ) पर्वत में, (अरगराटेषु) अरगराटों में, (हिरण्ये) हिरण्य में, (गोषु) गौओं में (यत्) जो (यश:) यश है; (सिच्यमानायाम्) सीचे जाने वाले (सुरायाम्) शुद्ध जल में, (कीलाले१) अन्न में (मधु) जो मिठास है (तत्) वह सब (मयि) मुझ में हो।
टिप्पणी -
[पर्वत में यश है दृढ़ता। अरगराटों अर्थात् अरों वाले घराटों में यश है अन्न को पीसना; यहां केवल पीसना अर्थ अभिप्रेत है, कुकर्मों तथा व्यसनों को पीस डालना। "अरों वाले घराट" हैं "पनचक्कियाँ" जो कि पानी के वेग द्वारा चलती हैं। हिरण्य में यश है हृदयरमणीयता, सबके हृदयों की रमणीय होना। गौओं में यश है निज दुग्ध द्वारा पालन-पोषण, अन्यों को पालना तथा पोषण करना। सुरा है उदक (निघं० १।१२)। कृषि काम में सींचा गया, मीठा उदक मीठे अन्न का उत्पादन करता है, खारा-उदक कृषि कर्म में न सींचना चाहिये। भारतीय दर्शन शास्त्रों के अनुसार शुद्ध जल का गुण है माधुर्य। कीलाल है अन्न (निघं० २।७), प्रकरणानुसार मधुर अन्न, न कि खट्टा कसैला अन्न। सायणाचार्य ने "अरगराटेषु" के निम्नलिखित अर्थ किये हैं "रथचकावयवाः कीलका अरा:। तान् गिरति आत्मना संश्लेषयतीति अरगरो रथः। तेन अटन्ति संचरन्तीति अरगराटा: रथिनो यशस्विनो राजान:। यद्वा अरा: अरयः, तान् गच्छन्तीति अरगाः वीरा भटा: तेषां राटाः जयघोषः। रट परिभाषणे] [१. कीलालम्= कील बन्धने (भ्वादिः), तदर्थम् अलम् (पर्याप्तम, भ्वादिः) जीवात्मा को शरीर के साथ बान्धे रखने में जो पर्याप्त है, समर्थ है- अन्न।]