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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 84

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 84/ मन्त्र 2
    सूक्त - अङ्गिरा देवता - निर्ऋतिः छन्दः - त्रिपदार्षी बृहती सूक्तम् - निर्ऋतिमोचन सूक्त

    भूते॑ ह॒विष्म॑ती भवै॒ष ते॑ भा॒गो यो अ॒स्मासु॑। मु॒ञ्चेमान॒मूनेन॑सः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भूते॑ । ह॒विष्म॑ती । भ॒व॒ । ए॒ष: । ते॒ । भा॒ग: । य: । अ॒स्मासु॑ । मु॒ञ्च । इ॒मान् । अ॒मून् । एन॑स: । स्वाहा॑ ॥८४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भूते हविष्मती भवैष ते भागो यो अस्मासु। मुञ्चेमानमूनेनसः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भूते । हविष्मती । भव । एष: । ते । भाग: । य: । अस्मासु । मुञ्च । इमान् । अमून् । एनस: । स्वाहा ॥८४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 84; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (भूते) हे भूतकालसम्बन्धिनी कृच्छ्रापत्ति ! (हविष्मती) हमारी हवि को ग्रहण करनेवालो (भव) तू हो जा, (एष:) यह हवि (ते भागः) तेरा भाग है [तेरा आंशिक स्वरूप है, तू ही तद्रूप है] जो कि (अस्मासु) हम में है। (इमान्) इन्हें अर्थात् शिष्यों को (अमून्) तथा उन्हें [जो कि इन से अतिरिक्त है] (एनसः) पाप से (मुञ्च) मुक्त कर दे, (स्वाहा) तदर्थ हम परमेश्वरार्पित आहुतियां प्रदान करते हैं।

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