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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
सूक्त - जमदग्नि
देवता - कामात्मा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कामात्मा सूक्त
वाञ्छ॑ मे त॒न्वं पादौ॒ वाञ्छा॒क्ष्यौ॒ वाञ्छ॑ स॒क्थ्यौ॑। अ॒क्ष्यौ॑ वृष॒ण्यन्त्याः॒ केशा॒ मां ते॒ कामे॑न शुष्यन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठवाञ्छ॑ । मे॒ । त॒न्व᳡म् । पादौ॑ । वाञ्छ॑ । अ॒क्ष्यौ᳡ । वाञ्छ॑ । स॒क्थ्यौ᳡ । अ॒क्ष्यौ᳡ । वृ॒ष॒ण्यन्त्या॑: । केशा॑: । माम् । ते॒ । कामे॑न । शु॒ष्य॒न्तु॒ ॥९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
वाञ्छ मे तन्वं पादौ वाञ्छाक्ष्यौ वाञ्छ सक्थ्यौ। अक्ष्यौ वृषण्यन्त्याः केशा मां ते कामेन शुष्यन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठवाञ्छ । मे । तन्वम् । पादौ । वाञ्छ । अक्ष्यौ । वाञ्छ । सक्थ्यौ । अक्ष्यौ । वृषण्यन्त्या: । केशा: । माम् । ते । कामेन । शुष्यन्तु ॥९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(मे) मेरे (तन्वम्) शरीर को, (पादौ) पैरों को, [हे पत्नी !](वाञ्छ) तू चाह, (अक्ष्यौ) दोनों आंखों को (वाञ्छ) तू चाह, (सक्थ्यौ) दोनों ऊरूओं [thighs] को (वाञ्छ) चाह। (वृषण्यन्त्याः) सेचनसमर्थ मुझ को चाहती हुई के, (ते ) अर्थात् तेरी ( अक्ष्यौ ) दोनों आंखें, (केशा:) और केश (माम् कामेन) मेरे प्रति कामना के कारण (शुष्यन्तु) सूख जांय।
टिप्पणी -
[पति कहता है रुष्ट हुई पत्नी के प्रति, कि विवाह से पूर्व तूने मुझे पसन्द कर लिया था और मेरे शरीर और शरीर के प्रत्येक अङ्ग को तुने पर्ख लिया था। अब भी तदनुसार तू मेरे शरीर और शरीर के प्रत्येक अङ्ग को चाह, मेरे किसी अङ्ग को विकृत हुआ जानकर, मुझ से रुष्ट होकर विरक्त न हो। तेरी विरक्ति के कारण, तुझे त्याग कर, मैं कहीं चला गया तो भी मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मुझे स्मरण करती हुई की तेरी आंखें तथा केश सूख जाय। पति के वियोग में दुःख के कारण अतिशय रोती हुई की आंखें सुख जाय, और तैल न लगाने से केश सूख जाय। जिनके परिणामभूत मेरा पुनरागमन हो और पुनः सुखपूर्वक सहवास कर सकें। यह अभिप्राय मन्त्र का प्रतीत होता है। इस अभिप्राय को अगले दो मन्त्रों में स्पष्ट किया है, यथा–