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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 94/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वाङ्गिरा
देवता - सरस्वती
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त
ओते॑ मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी ओता॑ दे॒वी सर॑स्वती। ओतौ॑ म॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॒र्ध्यास्मे॒दं स॑रस्वति ॥
स्वर सहित पद पाठओते॒ इत्याऽउ॑ते । मे॒ । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । आऽउ॑ता । दे॒वी । सर॑स्वती। आऽउ॑तौ । मे॒ । इन्द्र॑: । च॒ । अ॒ग्नि: । च॒ । ऋ॒ध्यास्म॑ । इ॒दम् । स॒र॒स्व॒ति॒ ॥९४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
ओते मे द्यावापृथिवी ओता देवी सरस्वती। ओतौ म इन्द्रश्चाग्निश्चर्ध्यास्मेदं सरस्वति ॥
स्वर रहित पद पाठओते इत्याऽउते । मे । द्यावापृथिवी इति । आऽउता । देवी । सरस्वती। आऽउतौ । मे । इन्द्र: । च । अग्नि: । च । ऋध्यास्म । इदम् । सरस्वति ॥९४.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 94; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
जैसे (द्यावापृथिवी) द्यौः और पृथिवी (ओते) पट में ताने-बाने के सदृश परस्पर ओतप्रोत हैं, परस्पर सम्बद्ध हैं, और उनमें (देवी सरस्वती) जलदात्री मेघोया वाणी (ओता) ओत-प्रोत है, सम्बद्ध है। और उन्हीं में (इन्द्रः) अन्तरिक्षीय विद्युत् (च) तथा (अग्निः) पार्थिवाग्नि (ओतो) ओत-प्रोत हैं, वैसे (सरस्वति) ज्ञान-विज्ञान वाली हे वेदवाणी ! (इदम्) इस राष्ट्र को प्राप्त कर (मे) मेरी (द्यावापृथिवी) नर-नारी प्रजा१, (इन्द्रः) सम्राट् (च) और (अग्निः) अग्रणी प्रधानमन्त्री (ऋध्यास्म) हम सब ऋद्धि को प्राप्त हों, बढ़े।२
टिप्पणी -
[मन्त्र में वेद विद्या के प्रचार का फल दर्शाया है, सर्वतो वृद्धिः। सरस्वती = सरो विज्ञानमुदकं वा विद्यते ऽस्यां सा सरस्वती वाक् नदी वा (उणा० ४।१९०, दयानन्द)]। [१. यथा द्यौरहं पृथिवी त्वम्। ताविह संभवाव प्रजामाजनयावहै।" (ऋ० १४।२।७१)। २. सूक्त ९४ में कथन, राष्ट्र के राजा द्वारा हुआ है, जिसे कि वरुण कहते हैं। (यजु० ८॥३७)।]